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Showing posts from 2023

गौ माता नंदिनी वंश

गोमाता का नन्दिनी वंश कश्यप की पत्नी "सुरभी" ( ११ ) से गौ या गोमाता नामक पुत्र पैदा हुआ। इसी गीया गोमाता के वंशधर नन्दिनी वंश के नाम से विख्यात हुये । यह नन्दिनी वंश मुख्य रूप से किस स्थान पर निवास करता था, इसका ठीक पता नहीं चलता, किन्तु इतिहासकार हेरोडाट्स के लेखों से गोमाता वंश का कुछ संकेत प्राप्त होता है । ईरान का एक क्षेत्र मेदिया कहलाता है । इस मेदिया को ही पुराणों में वर्णित अपतन, मद्र तथा मग व कहा गया है । यह मद्र ही प्राचीन मेडिया (मीडिया) जान पड़ता है। इसी मीडिया के निवासी गोमाता वंश कहाते थे । गोमाता वंश की एक शाखा नन्दिनी वंश भी है । पुरातन लेखों के अनुसार नन्दिनी वंश के लोग भारत में भी थे, यह लोग सम्भवतः वशिष्ठ राज्य में प्रजा की भाँति रहते थे । नन्दिनी लोगों ने वशिष्ठ के कहने पर एक बार विश्वामित्र तथा उनके सहयोगी सत्यव्रत (त्रिशंकु ) से भी युद्ध किया था, जिसे पुराणों में नन्दिनी गाय का झगड़ा बताया. गया है । यदि पौराणिक कथाओं को इतिहास की कसौटी पर कसा जाय तो काल्पनिक बातें भी स्पष्ट दिखायी पड़ने लगती हैं। श्रापद जाति- इस वंश का मूल पुरुष श्रापद था, जो कश्यप की पत

नाग वंश गरुण वंश तथा जटायु वंश का इतिहास

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नाग वंश - कश्यप को क्रोधदशा (६) नामक पत्नी से जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम नाग था । इसी नाग के वंशज नाग वंशी कहलाये। आगे चलकर इन नाग वंशियों की सात शाखायें हो गई । इन सातों शाखाओं के सात मूल पुरुष कर्कोटक सर्प, बासु की नाग, काश्यप नाग, कुन्ड नाग, महानाग, तक्षक नाग तथा एलपात्र नाग थे । कर्कोटक सर्प से सर्प वंश, वासुकी से वासुकी नाग वंश, काश्यप से मुख्य काश्यप नाग वंश, कुन्ड से कुन्ड नाग वंश महानाग से शेष नाग वंश, तक्षक से तक्षक नाग वंश और एलपात्र से एल नाग वंश चला । वर्तमान तुकिस्तान का नाम पहले नाग लोक था और अधिकांश तुर्क ही नाग वंशी हैं। इन तुकों की उपजातियां, से सवासक आदि, शेष और वासुकि नाग के नाम पर हैं । उत्तरी तुकिस्तान के पहले गिरगिस तथा उसके बहुत बाद में काम्बोज कहा जाने लगा । यह स्थान प्राचीन नाग वंश का निवास स्थान था। गरुड़ वश जो नागवंश के विमात्रिक भाई थे, नागों पर आक्रमण करके उन्हें पराजित कर दिया, इससे मुख्य नागवंश अपना नाग लोक ( तुर्किस्तान) छोड़कर क्षीर सागर (अराल सागर) के क्षेत्र में जा बसे । इस विषय में इतिहास- कार नन्दलाल कृत रसातल नामक पुस्तकों में भो उ

यातुधान वंश अप्सरा वंश व श्रोरुह जाति का इतिहास

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यातुधान वंश - दक्ष पुत्री सुरसा जो कश्यप की छठीं पत्नी थी, उसके यातुधान नाम का पुत्र पैदा हुआ (देखें कश्यप वंश का वंश वृक्ष ) । सुरसा पुत्र यातुधान के वंशधर यातुधान जाति के नाम से विख्यात हुये । यातुधान जाति के लोग बड़े शौर्यवान तथा योद्धा होते थे । यह 'लोग प्रायः सैनिकों का कार्य करते थे और दूर-दूर तक युद्ध करने जाते थे । यातुधान को संतीसवीं- अड़तीसवीं पीढ़ी तक इस जाति की संख्या बहुत बढ़ गई थी। यह लोग सैनिक होने के नाते दूर तक फैलते -और बसते गये, यहाँ तक कि अपने मूल स्थान से चल कर यह लोग आन्त्रालय (आस्ट्रेलिया) तथा लंका के आस-पास द्वीप समूहों में बस गये। पहले यह लोग पोलस्त - वैश्रमण, कुवेर के साथ लंका में रहकर कुवेर की यक्ष संस्कृति ( यक्ष जाति) ग्रहण कर लिया, और बाद में पौजास्ति वैश्रमण रावण के राज्य में रहकर लंकावासियों के साथ रक्ष संस्कृति ग्रहण कर लिये, और राक्षस कहे जाने लगे । यहाँ यक्ष और रक्ष संस्कृति पर संक्षेप में कुछ लिखना आवश्यक समझता हूँ। जिस प्रकार हिन्दू संस्कृति (जाति) में अनेकों जातियाँ हैं, जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि तथा अनेक और भी उप-जातियाँ

द्विस फेतर व गंधर्व जाति का इतिहास

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द्विस फेतर जाति - यह जाति कश्यप को काष्टा नामक पत्नी की संतानों से चली । इनके विषय में कोई विशेष विवरण नहीं प्राप्त होता, किन्तु पुराणों में द्विस फेतर जाति को वनस्पतियों का अधिपति कहा गया है। गंधर्व जाति - मरीचि पुत्र कश्यप की पत्नी अरिष्टा (५) से गंधर्व नाम का पुत्र पैदा हुआ । इसी गंधर्व के वंशधरों से गंधर्व जाति बनी। भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर जहाँ अब अफरीदी, बलुची और काबुली पठान लोग रहते हैं। वहीं प्राचीन गंधवों का देश गान्धार था । इसी गान्धार वंश की कन्या गान्धारी - दुर्योधन की माता थी । प्राचीन गान्धार को अब कन्दहार या कन्धार कहा जाता है। पुराणों और इतिहासों में गंधर्व जाति का भी उल्लेख पाया जाता है, वे लोग उसी गान्धार प्रदेश के निवासी थे, अतः गंधर्व जाति के नाम पर गांधार राज्य बना, जिसे अब कंधार कहते हैं । पुरातन लेखों के अनुसार गंधर्व जाति महा बलशाली और बड़े डील डौल के होते थे । इस बात की सत्यता का प्रमाण आज भी हमारे सामने सर्वविदित है । कि साधारण व्यक्ति की अपेक्षा एक काबुली या काबुली पठान कितने बड़े डील-डोल के होते हैं, और साधारण व्यक्ति की अपेक्षा उनमें शारीरि

दैत्य दानव वंश का इतिहास

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दैत्य वंश - कश्यप की पत्नी दिति से जो दो पुत्र देव तथा दैत्य हुये, उनमें देव जाति का वर्णन आप पढ़ चुके और दैत्य वंश का विवरण इस प्रकार है- दिति कश्यप की ज्येष्ठ पत्नी थी तथा दिवि का पुत्र दैत्य भी ज्येष्ठ ही था, इसलिये दैत्य वंश भी कश्यप के अन्य वंशजों से ज्येष्ठ माना गया। कश्यप का राज्य काश्यप समुद्र तट पर था, अस्तु दैत्यों का राज्य भी बंटवारे में कास्पियन तट के आस-पास ही मिला । कश्यप- अदिति के वंशज आदित्यों का तथा देवों की राज्य सीमा दैत्यों से मिली हुई थी, जिसके कारण देवों-दैत्यों तथा 'आदित्यों-दैत्यों से आये दिन झगड़े-झनैले हुआ करते थे । पुरातत्व विज्ञ जिस "हीलियोलिथिक" सभ्यता का वर्णन करते हैं, वह दैत्यों की ही सभ्यता थी। उसकी एक शाखा अमेरिका में “मय सभ्यता" के रूप में विकसित हुई, जिसमें दैत्यों तथा दानवों की मिली-जुली संस्कृति थी। दूसरी मित्र में मेसोपोटामियाँ तथा तीसरी बेबीलोन में असुरों के नाम से प्रसिद्ध हुई। दैत्य वंश का पौराणिक वंश वृक्ष तालिका ४ की तरह है- दैत्य पुत्र हिरण्य हिरण्याक्ष और हिरण्य कश्यप बड़े प्रतापी थे, उन्होंने अनेकों देवों को

ब्रह्मा की उत्पत्ति

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ब्रह्मा की उत्पत्ति —ब्रह्मा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मुझे जो भी लेख पढ़ने को मिले हैं, उन सबमें कुछ न कुछ मतभेद पाया जाता है। पुराणों में भी बहुत मतभेद है । कहीं त्रिगुणा- त्मक सृष्टि से सम्बन्धित उत्पत्ति कही गई है तो किसी में स्वयं उत्पन्न होने की बात कही गई है, किन्तु अधिकांशतः ब्रह्मा को क्षीर सागर सायी भगवान विष्णु की नाभि से निकले हुये कमल से उत्पन्न हुआ बताते हैं । यद्यपि यह बात यथार्थता के अधिक निकट तो प्रतीत होती है, किन्तु पैदा होने का ढंग कल्पित रूपक बना कर रहस्यमय कर दिया गया है । बिना पुरुष तथा स्त्री के संसर्ग से स्वतः ही पैदा होने की बात निर्मूल है और इसी संदेह का लाभ उठाकर इसे केवल कल्पित रचना कह देने का साहस किया जा सकता है। ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु से हुई, अस्तु सर्वप्रथम हमें इस पर विचार करना है कि विष्णु कौन थे ? किस कुल या वंश में उनकी उत्पत्ति हुई तथा उनका और उनके वंशजों का मूल निवास कहाँ था ? इन बातों का सूक्ष्मता से विचार करने तथा अन्य लेखों को देखने से एक स्पष्ट तथ्य हमें प्राप्त होता है। पुरातन लेखों के अनु- सार विष्णु क्षीर सागर के निवासी थे

कश्यप वंश का इतिहास

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कश्यप वंश - कश्यप मरीचि के पुत्र तथा ब्रह्मा के पौत्र थे। इनका मूल निवास कश्यपी प्रदेश था ( Caspia Province ) । कश्यप के नाम पर अरव का कश्यप सागर जो ईरान के उत्तर और काला सागर के पूर्व में स्थित है, जिसे अब कैस्पियन सागर कहते हैं अब तक विख्यात है । कश्यप उस क्षेत्र का अधिपति था। उसके राज्य में वर्तमान तेहरान, बाबुल, वगदाद, बाकू, अस्त्राखान तुरगाई, (रूस में) चिम्बाई, बुखारा, और अस्कावाद आदि सम्मिलित थे । कश्यप अपने समय के महा विजेता, शौर्यवान, प्रतापी तथा प्रजा पालक थे । इनकी उत्तम राज्य व्यवस्था तथा प्रजा की सम्पन्नता के कारण इन्हें एक अवतार मान लिया गया था । संभवतः पुराणों में जो कच्छप अवतार कहा गया है, वह यही कश्यप थे। कश्यप को पुराणों ने प्रजापति कहा है, क्योंकि उनसे कई विशाल शाखायें तथा वंश चले । कश्यप के तेरह पत्नियाँ थीं। यह कश्यप पत्नियाँ दक्षवंश की कन्यायें थीं। इनके नाम इस प्रकार हैं- (१) अदिति जिससे आदित्य या सूर्य पैदा हुये जिनसे सूर्यवंश चला। जिसका विवरण आगे लिखा गया है । - (२) दिति, (३) दनु, (४) काष्टा, (५) अरिष्टा, (६) सुरसा, (७) इड़ा, (८) मुनी, (2) क्रोधवशा,

स्वायंभुव मनु का मनुर्भरत वंश

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स्वायंभुव मनु का मनुर्भरत वंश - जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि तीन पौराणिक राजवंशों की वंशावलियों में मनुर्भरत वंश सबसे प्राचीन राजवंश हैं जो स्वायंभुव मनु से चला | स्वायंभुव मनु प्रथम मनु है। विश्व के अनेकों ग्रंथों का अध्ययन करने से पता चलता है कि सभी मनुष्यों की उत्पत्ति इन्हीं मनु से हुई है। संसार की भिन्न-भिन्न जातियों में मनु के भिन्न-भिन्न नाम मिलते हैं। आदीश्वर, अशिरीश, वाधेश, बैंकस, मीनस, आदम और मनु आदि नाम उस आदि पुरुष नूह के ही हैं। मनु का जीवन काल प्रथम मन्वन्तरि है। पुराणों में वर्णित स्वायंभुव मनु से लेकर उनके वंशजों का भोग काल ही सतयुग माना जाता है । पुरातत्व अनु- संधान के अनुसार सतयुग का भोग काल ई० पू० ६५६४ वर्ष से ईसा पूर्व ४५८४ वर्ष माना जाता है । स्वायंभुव मनु के दो पुत्र थे जिनका नाम प्रियव्रत तथा उत्तान पाद था । इन दोनों भाइयों से मनु वंश की दो शाखायें चलीं। एक शाखा प्रियव्रत के वंशजों की चली, जिसमें स्वायंभुव मनु समेत पाँच मनु और ३५ प्रजापति हुये, (देखें विष्णु पुराण में स्वायंभुव मनु प्रसंग, भागवत पु०, हरिवंश पु० तथा ऋग्वेद) दूसरी शाखा स्वायंभुव मनु

विश्व की प्राचीनतम आदिम जातियाँ

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विश्व की प्राचीनतम आदिम जातियाँ -स्वायंभुव मनु के लेख में आप पढ़ेंगे कि मनुभव वंश सबसे प्राचीन राज वंश है जो स्वायंभुव मनु से प्रारम्भ होता है यहाँ प्रश्न यह पैदा होता है कि आखिर स्वायंभुव मनु की उत्पत्ति किससे और इनके पूर्वज तथा मूल पुरुष कौन थे हिन्दू धर्म ग्रन्थों को अध्ययन करने से केवल एक ही बात हर लेखों से प्राप्त होती है उन लेखों के अनुसार स्वायंभुव मनु किसी के द्वारा उत्पन्न नहीं हुये वरन वह स्वयं ही उत्पन्न गये और स्वयं उत्पन्न होने के कारण उन्हें स्वायंभुव कहा गया यद्यपि बिना पुरुष तथा स्त्री के संसर्ग के किसी का उत्पन्न होना एक असम्भव बात है फिर भी हम आज तक आँख तथा मष्तिस्क बन्द करके यही बात मानते चले आये हैं क्योंकि इसके अतिरिक्त हमारे पास और कोई चारा न था किन्तु आज का विद्वाI जो अन्ध विश्वासी नहीं है यह मानने के लिये कदापि तैयार नहीं होगा कि बिना पुरुष और स्त्री के कैसे कोई स्वयं पैदा हो जायगा, अतः यह मानना ही पड़ेगा कि स्वायंभुव के पिता भी थे और माता भी तथा वह भी ऐसे ही पैदा हुये थे जैसा विश्व का हर व्यक्ति पैदा होता है यह बात और है कि उनके माता पिता का नाम हम

सृष्टि की उत्पति

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सृष्टि की उत्पत्ति - सृष्टि की उत्पत्ति संबंधी विषय प्रस्तुत पुस्तक का विषय नहीं है 1 किन्तु — इस पर कुछ विचार व्यक्त करना शायद अनुचित न होगा । धर्म ग्रन्थों के अनुसार - आदि सृष्टि में स्वायंभुव और ब्रह्मा आदि स्वयं उत्पन्न होकर सृष्टि की रचना किया, किन्तु आज का विद्वान् यह तर्क मानने के लिये तैयार नहीं कि कोई स्वयं कैसे बिना माँ-बाप के उत्पन्न हो सकता है । भौतिक खगोल और भू-गर्भ शास्त्रियों के विचार इस संबंध में कुछ ओर है, फिर भी यह स्पष्ट है कि सृष्टि उत्पत्ति का अतीत इतना धूमिल है कि वल देकर कोई तथ्य प्रस्तुत करना केवल बाल हठ मात्र ही प्रतीत होता है। एक वैज्ञानिक ने जब मनुष्य की बन्दर से उत्पत्ति बताया तो लोगों ने इस तथ्य का विरोध करते हुये यह तर्क प्रस्तुत किया कि जब बन्दर की सन्तान मनुष्य इतना सभ्य हो गया तो बन्दर क्यों नहीं इतना सभ्य हो पाया। इस वास्तविक तर्क के समक्ष उस वैज्ञानिक की अल्पज्ञता ही प्रकट हो गई। जैसे किसी वैज्ञानिक खोज की मान्यता हमेशा नहीं बनी रहती वैसे ही धर्म ग्रन्थों के उक्त विषय की मान्यता भी समाप्त दिखाई पड़ रही है । अनेकों विद्वानों के सृष्टि उत्प

पौराणिक क्षत्रिय वंशावली

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पौराणिक क्षत्रिय वंशावली - हिन्दू धर्म ग्रन्थों में जिन तीन मुख्य राज्यवंशों का उल्लेख पाया जाता है, उसमें सर्व प्रथम मनुर्भरत्र वंश का वर्णन है। यह स्वायंभुवमनु से प्रारम्भ होकर दक्षवंश तक वर्णित है। इस वंश का भोग काल अथवा शासन व्यवस्था सतयुग का समय माना गया है । इस वंश की अन्तिम पीढ़ियों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उदय हो चुका था जो सतयुग (Heroic Age) और नेता का सन्धि काल कहलाता है । दूसरा सूर्यवंश है जो सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। सूर्य पिता कश्यप इस वंश का आदि पुरुष है जिसका पुत्र आदित्य या सूर्य था जिसके नाम से सूर्यवंश की स्थापना हुई। इस सूर्यवंश में जब राजा रघु हुये तो सूर्यवंश की एक शाखा रघुवंश नाम से प्रसिद्ध हुई । रघु के वंशजों में दशरथ और उनके पुत्रों में रामादि मर्यादा पुरुषोत्तम हुये जिससे यह वंश अधिक विख्यात हुआ । वैवस्वत मनु द्वारा स्थापित सूर्यवंश की उनतालीसवीं पीढ़ी में रामचन्द्र हुये । वैवस्वत मनु से त्रेतायुग का आरम्भ होकर राम के बाद पुराणों ने त्रेतायुग का अन्त माना है । सूर्यवंश से अनेकों राजवंशों की शाखायें वनीं और अलग-अलग नामों स