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Showing posts from July, 2023

स्वायंभुव मनु का मनुर्भरत वंश

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स्वायंभुव मनु का मनुर्भरत वंश - जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि तीन पौराणिक राजवंशों की वंशावलियों में मनुर्भरत वंश सबसे प्राचीन राजवंश हैं जो स्वायंभुव मनु से चला | स्वायंभुव मनु प्रथम मनु है। विश्व के अनेकों ग्रंथों का अध्ययन करने से पता चलता है कि सभी मनुष्यों की उत्पत्ति इन्हीं मनु से हुई है। संसार की भिन्न-भिन्न जातियों में मनु के भिन्न-भिन्न नाम मिलते हैं। आदीश्वर, अशिरीश, वाधेश, बैंकस, मीनस, आदम और मनु आदि नाम उस आदि पुरुष नूह के ही हैं। मनु का जीवन काल प्रथम मन्वन्तरि है। पुराणों में वर्णित स्वायंभुव मनु से लेकर उनके वंशजों का भोग काल ही सतयुग माना जाता है । पुरातत्व अनु- संधान के अनुसार सतयुग का भोग काल ई० पू० ६५६४ वर्ष से ईसा पूर्व ४५८४ वर्ष माना जाता है । स्वायंभुव मनु के दो पुत्र थे जिनका नाम प्रियव्रत तथा उत्तान पाद था । इन दोनों भाइयों से मनु वंश की दो शाखायें चलीं। एक शाखा प्रियव्रत के वंशजों की चली, जिसमें स्वायंभुव मनु समेत पाँच मनु और ३५ प्रजापति हुये, (देखें विष्णु पुराण में स्वायंभुव मनु प्रसंग, भागवत पु०, हरिवंश पु० तथा ऋग्वेद) दूसरी शाखा स्वायंभुव मनु

विश्व की प्राचीनतम आदिम जातियाँ

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विश्व की प्राचीनतम आदिम जातियाँ -स्वायंभुव मनु के लेख में आप पढ़ेंगे कि मनुभव वंश सबसे प्राचीन राज वंश है जो स्वायंभुव मनु से प्रारम्भ होता है यहाँ प्रश्न यह पैदा होता है कि आखिर स्वायंभुव मनु की उत्पत्ति किससे और इनके पूर्वज तथा मूल पुरुष कौन थे हिन्दू धर्म ग्रन्थों को अध्ययन करने से केवल एक ही बात हर लेखों से प्राप्त होती है उन लेखों के अनुसार स्वायंभुव मनु किसी के द्वारा उत्पन्न नहीं हुये वरन वह स्वयं ही उत्पन्न गये और स्वयं उत्पन्न होने के कारण उन्हें स्वायंभुव कहा गया यद्यपि बिना पुरुष तथा स्त्री के संसर्ग के किसी का उत्पन्न होना एक असम्भव बात है फिर भी हम आज तक आँख तथा मष्तिस्क बन्द करके यही बात मानते चले आये हैं क्योंकि इसके अतिरिक्त हमारे पास और कोई चारा न था किन्तु आज का विद्वाI जो अन्ध विश्वासी नहीं है यह मानने के लिये कदापि तैयार नहीं होगा कि बिना पुरुष और स्त्री के कैसे कोई स्वयं पैदा हो जायगा, अतः यह मानना ही पड़ेगा कि स्वायंभुव के पिता भी थे और माता भी तथा वह भी ऐसे ही पैदा हुये थे जैसा विश्व का हर व्यक्ति पैदा होता है यह बात और है कि उनके माता पिता का नाम हम

सृष्टि की उत्पति

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सृष्टि की उत्पत्ति - सृष्टि की उत्पत्ति संबंधी विषय प्रस्तुत पुस्तक का विषय नहीं है 1 किन्तु — इस पर कुछ विचार व्यक्त करना शायद अनुचित न होगा । धर्म ग्रन्थों के अनुसार - आदि सृष्टि में स्वायंभुव और ब्रह्मा आदि स्वयं उत्पन्न होकर सृष्टि की रचना किया, किन्तु आज का विद्वान् यह तर्क मानने के लिये तैयार नहीं कि कोई स्वयं कैसे बिना माँ-बाप के उत्पन्न हो सकता है । भौतिक खगोल और भू-गर्भ शास्त्रियों के विचार इस संबंध में कुछ ओर है, फिर भी यह स्पष्ट है कि सृष्टि उत्पत्ति का अतीत इतना धूमिल है कि वल देकर कोई तथ्य प्रस्तुत करना केवल बाल हठ मात्र ही प्रतीत होता है। एक वैज्ञानिक ने जब मनुष्य की बन्दर से उत्पत्ति बताया तो लोगों ने इस तथ्य का विरोध करते हुये यह तर्क प्रस्तुत किया कि जब बन्दर की सन्तान मनुष्य इतना सभ्य हो गया तो बन्दर क्यों नहीं इतना सभ्य हो पाया। इस वास्तविक तर्क के समक्ष उस वैज्ञानिक की अल्पज्ञता ही प्रकट हो गई। जैसे किसी वैज्ञानिक खोज की मान्यता हमेशा नहीं बनी रहती वैसे ही धर्म ग्रन्थों के उक्त विषय की मान्यता भी समाप्त दिखाई पड़ रही है । अनेकों विद्वानों के सृष्टि उत्प

पौराणिक क्षत्रिय वंशावली

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पौराणिक क्षत्रिय वंशावली - हिन्दू धर्म ग्रन्थों में जिन तीन मुख्य राज्यवंशों का उल्लेख पाया जाता है, उसमें सर्व प्रथम मनुर्भरत्र वंश का वर्णन है। यह स्वायंभुवमनु से प्रारम्भ होकर दक्षवंश तक वर्णित है। इस वंश का भोग काल अथवा शासन व्यवस्था सतयुग का समय माना गया है । इस वंश की अन्तिम पीढ़ियों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उदय हो चुका था जो सतयुग (Heroic Age) और नेता का सन्धि काल कहलाता है । दूसरा सूर्यवंश है जो सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। सूर्य पिता कश्यप इस वंश का आदि पुरुष है जिसका पुत्र आदित्य या सूर्य था जिसके नाम से सूर्यवंश की स्थापना हुई। इस सूर्यवंश में जब राजा रघु हुये तो सूर्यवंश की एक शाखा रघुवंश नाम से प्रसिद्ध हुई । रघु के वंशजों में दशरथ और उनके पुत्रों में रामादि मर्यादा पुरुषोत्तम हुये जिससे यह वंश अधिक विख्यात हुआ । वैवस्वत मनु द्वारा स्थापित सूर्यवंश की उनतालीसवीं पीढ़ी में रामचन्द्र हुये । वैवस्वत मनु से त्रेतायुग का आरम्भ होकर राम के बाद पुराणों ने त्रेतायुग का अन्त माना है । सूर्यवंश से अनेकों राजवंशों की शाखायें वनीं और अलग-अलग नामों स