सृष्टि की उत्पति

सृष्टि की उत्पत्ति - सृष्टि की उत्पत्ति संबंधी विषय प्रस्तुत पुस्तक का विषय नहीं है 1 किन्तु — इस पर कुछ विचार व्यक्त करना शायद अनुचित न होगा । धर्म ग्रन्थों के अनुसार - आदि सृष्टि में स्वायंभुव और ब्रह्मा आदि स्वयं उत्पन्न होकर सृष्टि की रचना किया, किन्तु आज का विद्वान् यह तर्क मानने के लिये तैयार नहीं कि कोई स्वयं कैसे बिना माँ-बाप के उत्पन्न हो सकता है । भौतिक खगोल और भू-गर्भ शास्त्रियों के विचार इस संबंध में कुछ ओर है, फिर भी यह स्पष्ट है कि सृष्टि उत्पत्ति का अतीत इतना धूमिल है कि वल देकर कोई तथ्य प्रस्तुत करना केवल बाल हठ मात्र ही प्रतीत होता है।

एक वैज्ञानिक ने जब मनुष्य की बन्दर से उत्पत्ति बताया तो लोगों ने इस तथ्य का विरोध करते हुये यह तर्क प्रस्तुत किया कि जब बन्दर की सन्तान मनुष्य इतना सभ्य हो गया तो बन्दर क्यों नहीं इतना सभ्य हो पाया। इस वास्तविक तर्क के समक्ष उस वैज्ञानिक की अल्पज्ञता ही प्रकट हो गई। जैसे किसी वैज्ञानिक खोज की मान्यता हमेशा नहीं बनी रहती वैसे ही धर्म ग्रन्थों के उक्त विषय की मान्यता भी समाप्त दिखाई पड़ रही है ।

अनेकों विद्वानों के सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी अनुमान सत्य से बहुत दूर और बहुत से अनु- मान सत्य के बहुत समीप भी प्रतीत होते हैं। यहाँ विश्व के कुछ विशिष्ट विद्वानों, भौतिक शास्त्रियों के विचारों का अध्ययन करके उनके द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति संबंधी विचार और अनुमान अपने विचारों के अनुसार प्रस्तुत कर रहा हूँ-लगभग ऐसे सभी विचारकों ने कहा है कि सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी बातों का प्रारम्भ प्रायः अस्पष्ट ही बना हुआ है और सीधी बात तो यह है कि उस समय का प्रत्यक्षदर्शी साक्षी कोई नहीं है इसलिये मत विरोध स्वाभाविक ही है । उत्पत्ति सम्बन्धी जो विवरण मैं यहाँ प्रस्तुत करने जा रहा हूँ वह बहुत से साधनों और विचारों तथा अनुमानों के टुकड़े-टुकड़े जोड़कर ही यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । यद्यपि यह बहुत ही विस्तृत विषय है किन्तु विस्तार भय से बहुत संक्षिप्त लेख आप के समक्ष प्रस्तुत है-

प्रस्तरों की प्राचीनतम चट्टानों के आधार पर जो पृथ्वी के प्रारम्भिक अथवा वचपन के साथी प्रतीत होते हैं, उन्हीं कतिपय साक्षियों के आधार पर ही वैज्ञानिकों ने अपने अनुमान प्रस्तुत किये हैं । चन्द्र तारे और चट्टानें ही इस बात के साक्षी हैं और पृथ्वी तथा सागर के इस गठबन्धन में स्वयं उनका भी बड़ा हाथ था। जहाँ तक विज्ञान की गति है उसके अनुसार तो पृथ्वी की आयु दो अरब वर्ष से कुछ ऊपर ही आंकी गई है। पृथ्वी की जो परत चट्टानों से विनिर्मित हुई है उसके भीतर कुछ रेडियो सक्रिय पदार्थ हैं। उनकी विघटित होने वाली गति को नापने से यह अनुमान सम्भव हो सका कि उनकी आयु क्या है ।

भौतिक शास्त्रियों का अनुमान है कि पृथ्वी अपने जनक सूर्य से ही टूट कर अलग हुई में एक और शून्य में गैसों का एक अत्यन्त गर्म गोला मात्र दौड़ चली। यह शून्य सधे हुए पथ पर सुनिश्चित गति से चक्कर काटने लगी थी। मार्ग और गति का नियन्त्रण किन्हीं विराट शक्तियों द्वारा हो रहा था । वह विराटतम अदृष्य शक्ति प्रारम्भ से पहले प्रारम्भ में, मध्य में, अन्त में, और अन्त के बाद भी शाश्वत सत्य के रूप में अखिल ब्रह्माण्ड के नियन्त्रण में लगी हुई है।

पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होने लगी थी, गैसों ने तरल रूप धारण किया और पृथ्वी पिघले हुए एक पिंड का रूप बनी । नवजात पृथ्वी ठंडी होकर ठोस अवस्था में आने तक लाखों वर्षों का समय लगा होगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी ठंडी होकर जब सिकुड़ी होगी तो उसमें दरारें पड़ गई होंगी । भू-शास्त्रियों के अनुसार संयोग से पृथ्वी का एक बड़ा दरार युक्त भाग टूट कर अलग हो गया और वह शून्य में दौड़ चला, किन्तु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण वह पृथ्वी के चतुर्दिक अपने निश्चित पथ पर चक्कर लगाने लगा। उसका नाम चन्द्रमा पड़ा जो पृथ्वी का उपग्रह कहा जाता है । चन्द्रमा के अलग होने से पृथ्वी का जो स्थान रिक्त हुआ वैज्ञानिकों के अनुसार वह समुद्र का गढ़ा बन गया । पृथ्वी ज्यों-ज्यों लाखों वर्षों में ठंडी होती ई उसके वायुमंडल से आक्सीजन और हाइड्रोजन गैसें मिलकर बादलों का रूप धारण करती चली गई । इससे पृथ्वी बादलों के मोटे आवरण से ढक गई। जब प्राणिविहीन पृथ्वी लाखों वर्ष बाद ठंडी हुई और ठीक वातावरण बना तो महावृष्टि होने लगी जो लगातार लम्बे समय तक चलती रही थी । बादलों का आवरण झीना पड़ने से सूर्य किरणें पृथ्वी पर आने लगीं और भारी वर्षा से पृथ्वी के गढ़े भरकर समुद्र का रूप ले लिया। वैज्ञानिकों, भू-गर्भ शास्त्रियों के अनुसार यह वर्षा दिनों, महीनों वर्षों और शताब्दियों तक होती रही थी। जिससे सागरों का रूप महासागरों ने ले लिया। जल प्रवाह और प्रक्षारणों द्वारा महाद्वीप खुरचे जाकर बड़ी-बड़ी नदियों को जन्म दिया । बादलों के झीना पड़ने पर जब सूर्य किरणें पृथ्वी तल पर पहुँचने लगीं तो क्लोरोफिल नामक उस पदार्थ की रचना होने लगी जिससे जीवाणु सेलों की उत्पत्ति संभव होती है ।

यह कहना कठिन है कि समुद्र ने उस रहस्यमय और आश्चर्य युक्त वस्तु को कैसे उत्पन्न किया जिसका नाम प्ररस (प्रोटोप्लाज्म) है । संभवतः मद्धिम प्रकाश, गर्म जलीय ताप, दबाव और क्षार गुणों की अज्ञात अवस्थाओं ने उस अजीब से जीव को उत्पन्न करने में भारी योगदान दिया हो । अनुमानतः सागर के गरम क्षार गुणों में प्रांगार द्विजारेय (कार्बन-डाई-आक्साइड) गंधक, फास्फोरस, पोटैसियम और चूने से प्रारम्भिक जीवों के सेल का निर्माण हुआ जिससे जीवन-कण व्यूहाणु ( मोलोक्यूलस ) पनपे । कालान्दर में व्यूहाणुओं में प्रजनन की सामर्थ उत्पन्न हुई और जीवन का अबाध श्रोत प्रारम्भ हो गया । जीवकोष की उत्पत्ति से लेकर जीवन का श्रोत चालू होने में कितनी सहस्राब्दियाँ या लक्षादियाँ बीती होंगी कहना कठिन है। उन प्रारम्भिक समुद्रवासी जीवों (प्राणियों) ने कालान्तर में अपने भीतर पर्णसाद नामक रहस्यमय पदार्थ का विकास करके इस योग्य हो गये कि जलवायु से प्रांगार द्विजारेय ग्रहण कर सकें और जीवन धारण करने के लिये उन प्रांगारिक पदार्थों का निर्माण कर सकें। इस प्रकार प्रथम सेलों से काई और उसकी प्रजा- तियों में जो अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ आती हैं उनका निर्माण होने लगा। कुछ संल ( जीवों) तो अन्य तत्व ग्रहण करके अपना रूपान्तर कर लिया जिससे विविध रूपी प्राणियों की उत्पत्ति से सृष्टि क्रम प्रारम्भ हुआ । अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ, पेड़, पौधे, जल झंखाड़ अस्तित्व में आये जिन्हें शैलों से उत्पन्न जीवों ने भोजन के रूप में प्राप्त किया यह प्रक्रिया आज तक उसी रूप में चल रही है । जीव-कोपी प्राणियों ने ऐसे प्राणियों को जन्म दिया जिनके शरीरों में खाने-पीने पचाने, स्वास लेने और प्रजनन के अंग थे। इस प्रकार अकल्पित समय तक समुद्र में जीवन विकसित होता रहा । सारांश-संक्षेप यह कि कालान्तर में रूपान्तर होते-होते ऐसे प्राणी उत्पन्न हुये जो जल में श्लेप्यक मछलियों के रूप में तैरने और दूर-दूर तक फैलने लगे । ऐसे - शरीर विकास में लक्षान्दियाँ बीत गई होंगी किन्तु तब तक स्थलीय महाद्वीप निर्जन से ही रहे होंगे । बाद में कीड़े, शल्य तारक (स्टारफिश) और कड़े आवरण वाले जन्तु हुये । हमें भौतिक शास्त्री बताते हैं कि प्राचीन काल के अनुभवी विद्वानों, लेखकों ने धर्मग्रन्थों में इसे मत्स्य अवतार का रूप माना था किन्तु बाद के अज्ञानी भाष्यकारों ने अर्थ का अनर्थ बनाकर यह लिख डाला कि जब दंत्यों ने वेद को समुद्र में फेंक दिया तो भगवान ने मत्स्य अवतार ग्रहण कर वेदों का उद्धार किया अर्थात् डूबने से बचाया । विचारणीय है कि दैत्यों के समय में वेद लिपिबद्ध नहीं हुआ था। इस प्रकार सभी तथ्य प्रमाणित करते हैं कि सबसे पहले मछलियों की उत्पत्ति हुई ।

इस बीच पृथ्वी ठंडी होती गई जिससे उसका बाह्य आवरण कड़ा पड़ता गया । बाह्य शीतलता जब आन्तरिक भागों में पहुँची तो आन्तरिक भाग सिकुड़ कर संकुचित हो गये । फलतः आन्तरिक रिक्त स्थानों को भरने हेतु ऊपर की सतह नोचे धँसने लगी तो दबाव से कहीं-कहीं इतनी भीषण गर्मी उत्पन्न हो गई कि वह विस्फोट की प्रक्रिया में बदल गई । इस प्रक्रिया को ज्वालामुखी का नाम दिया गया। इन विस्फोटों से पिघली चट्टानें लावा रूप में बाहर आयीं जो ठंडी होकर पत्थरों का रूप धारण कर लिया। इस प्रकार अनेक पर्वत मालाओं का जन्म हुआ । फिर तो यह प्रक्रिया अनवरत रूप से चलकर आज की स्थिति में पहुँच गई । करोड़ों वर्ष पहले उक्त प्रक्रियाओं में जो प्राणी उन गर्म लावों में फँस गये वह लावों के प्रस्तर रूप बनने पर उनके शरीर (शव) उसमें पड़े रह गये। आज जब हम प्रस्तर पीड़ित शव (अवशेष) को देखते हैं तो यह बताना कठिन हो जाता है कि यह प्राणी किस युग में और कितने करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर पैदा हुआ था। तब से आज तक न जाने कितनी प्रजातियाँ प्राणियों की बनी और विनष्ट हुई। इसका लेखा-जोखा अल्प जीवी मानव के पास नहीं है |

समुद्री ज्वार-भाटा, प्रभंजन और तूफानों ने जब भी समुद्र में उत्पात मचाया, वहाँ के प्राणियों को एक स्थान से दूरस्थ दूसरे स्थान पर ला पटका । जहाँ की जलवायु में रहने के वे आदी (अभ्यस्थ) नहीं थे, अतः उनमें कुछ नष्ट हुये, कुछ ने उस वातावरण में रहने जोने के लिये अपने शारीरिक अवयवों को विकसित कर लिया । जिससे उनका रूपान्तर और आकार परिवर्तन भी होता चला गया । कई वार समुद्री तूफानों ने आदि जलचरों को जब स्थल पर ला पटका तो उनमें से अनेक प्राणियों ने अपने में असाधारण रूप से परिवर्तन और रूपान्तर करके उस वातावरण में रहने लायक अपने को बना लिया । यही प्रक्रिया करोड़ों वर्षों तक चलती रही होगी । फलतः बहुत प्रकार के स्थल चर भी पैदा हो गये। उनमें बहुत से प्राणी अपने को जल- स्थल दोनों जगह रहने लायक बना लिया । स्थलवासियों में कितने ही प्राणी वर्षों में अपने पंख विकसित कर उड़ने लगे । कुछ रेंगने वाले प्राणी भी अपना स्वरूप उसी अनुसार ढाल लिया । इस तरह एक-एक प्रजातियाँ बनती गई और उन प्रजातियों को रूपान्तर करने में लाखों लाख वर्ष बीत गया होगा । कहना नहीं होगा कि इसी प्रकार मानव का भी आदि शरीर करोड़ों वर्षों में रूपान्तर करते हुये विकसित हो पाया जबकि वह पशु अवस्था में लाखों वर्षों तक रहा होगा । प्राणि विद हमें बताते हैं कि मानव शरीर लगभग तीस करोड़ वर्षों से रूपान्तरित और विकसित होता हुआ आज की अवस्था तक पहुँचा है जिसमें लगभग १० लाख वर्ष इसे सभ्य होने में लगे होंगे । मानव पहले जंगली, असभ्य, अर्वसभ्य रहता हुआ उस काल गणना और श्रेणी में पहुँचा जब मानव ने अपना मस्तिष्क कुछ विकसित कर लिया था। मानव पहले अपनी सुरक्षा के लिये छोटे समूहों में पर्वतीय गुफाओं कन्दराओं में रहा, बाद में संख्या और ज्ञान विकसित होने पर फूल पत्तों से झोपड़ी आदि बनाना सीखा। इसी तरह अकल्पित समय में मानव पाषाण युग, धातु युग आदि को पार करता हुआ अपने मध्य में स्वायंभुव मनु अथवा आदम को उत्पन्न कर लिया। उस समय तक मानव इतना सभ्य हो चुका था कि वह काल गणना दिन-रात में कर सकता था और अपने कुछ पीढ़ी के पूर्वजों को याद रख सकता था । अतः प्रथम स्वायंभुव मनु काल से गणना और इतिहास का सिलसिला ही चल पड़ा | मनु को संसार के सभी मानव धर्मों में किसी ने मनु, किसी ने आदि मानव और आदम आदि का नाम दिया है और वही से अपना धार्मिक और ऐतिहासिक सम्बन्ध जोड़ने लगे हैं । इन प्रक्रियाओं में करोड़ों वर्ष लगे होंगे और स्रष्टा की विराट शक्तियों द्वारा नियन्त्रित सृष्टि की यह प्रक्रिया चलती हुई आज के युग में पहुँच गई जिसे आप स्वयं देखते हैं । मानव इतिहास स्वायंभुव मनु अथवा आदम से प्रारम्भ होता है जिसका समय आज से लगभग आठ हजार वर्ष पहले था जिसका विवरण आप अगले मंडलों में पढ़ेंगे ।

सृष्टि की उत्पत्ति सम्बन्धी लेख हिन्दू धर्म ग्रन्थों-पुराणों में भरा पड़ा है जिसे केवल त्रिगुणात्मक सृष्टि कहा गया है और उसे हमारे मनीषियों ने आध्यात्मिक रूप दे दिया है । यदि हम उस अध्यात्म तत्व को ऐतिहासिक रूप में अध्ययन करें तो उपरोक्त सभी वैज्ञानिक बातें हमारे सामने आ जाती हैं। और हमारे महान पुराणों की देन ही यह ऐतिहासिक तथ्य के रूप में हमारे सामने है । पुराण मंथन से मुझे जो तथ्य सत्य प्राप्त हुआ वह मेरे विचारों का एक संकेत मात्र है । यह लेख विस्तार भय से इतना संक्षिप्त करना पड़ा वरना इस विषय पर अनेक परिच्छेद लिखे जा सकते हैं ।

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