पौराणिक क्षत्रिय वंशावली

पौराणिक क्षत्रिय वंशावली - हिन्दू धर्म ग्रन्थों में जिन तीन मुख्य राज्यवंशों का उल्लेख पाया जाता है, उसमें सर्व प्रथम मनुर्भरत्र वंश का वर्णन है। यह स्वायंभुवमनु से प्रारम्भ होकर दक्षवंश तक वर्णित है। इस वंश का भोग काल अथवा शासन व्यवस्था सतयुग का समय माना गया है । इस वंश की अन्तिम पीढ़ियों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उदय हो चुका था जो सतयुग (Heroic Age) और नेता का सन्धि काल कहलाता है ।

दूसरा सूर्यवंश है जो सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। सूर्य पिता कश्यप इस वंश का आदि पुरुष है जिसका पुत्र आदित्य या सूर्य था जिसके नाम से सूर्यवंश की स्थापना हुई। इस सूर्यवंश में जब राजा रघु हुये तो सूर्यवंश की एक शाखा रघुवंश नाम से प्रसिद्ध हुई । रघु के वंशजों में दशरथ और उनके पुत्रों में रामादि मर्यादा पुरुषोत्तम हुये जिससे यह वंश अधिक विख्यात हुआ । वैवस्वत मनु द्वारा स्थापित सूर्यवंश की उनतालीसवीं पीढ़ी में रामचन्द्र हुये । वैवस्वत मनु से त्रेतायुग का आरम्भ होकर राम के बाद पुराणों ने त्रेतायुग का अन्त माना है । सूर्यवंश से अनेकों राजवंशों की शाखायें वनीं और अलग-अलग नामों से विख्यात हुईं। आगे चलकर उन राजवंशों की भी अनेक क्षत्रिय शाखायें होती चली गईं। जिनमें बहुत सी अब तक हैं । इस प्रकार सूर्यवंश की लगभग ढाई हजार से अधिक शाखायें भारत में विभिन्न नामों से वर्तमान हैं। जिनका यथासम्भव वर्णन आगे के लेखों में है । .

तीसरा राजवंश चन्द्रवंश है अत्रि के पुत्र चन्द्र के नाम से चन्द्रपुत्र वुध ने चन्द्रवंश की स्थापना किया था । चन्द्रवंश, सोमवंश तथा इन्दुवंश तीनों नाम एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। इसी वंश में राजा भरत हुआ जिसके नाम से यह देश भारत कहलाया । इसी वंश में युधिष्ठिर आदि पाण्डव हुये जिसने महाभारत युद्ध में अतुल पराक्रम दिखाकर ख्याति प्राप्त किया । ये द्वापर युग के पुरुष थे। पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर के बाद द्वापर का अन्त और कलयुग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में इस राजवंश में अनेक क्षत्रिय शाखायें हुईं। उन शाखाओं से भी अनेक प्रशाखायें और शाखायें बनीं जो अब ढाई हजार से भी अधिक हैं। इन चन्द्र वंशियों का विवरण यथा संभव आगे लिखा गया है जिसमें वंशों की उत्पत्ति, वंश परिचय और वर्तमान विवरण आदि है । इन पौराणिक राजवंशों (स्वायंभुवमुनु का मनुर्भरत वंश, सूर्यवंश तथा चन्द्रवंश) तथा उनकी शाखाओं का विवरण अलग-अलग नामों से लिखा गया है । यद्यपि क्षत्रियों की सभी शाखायें, प्रशाखाएँ आदि की इतनी अधिक संख्या है और यह भारत ही नहीं विश्व के अनेक भू-भागों में फैले और बसे हुये हैं कि इनका पूर्ण विवरण खोजना और लिखना एक कठिन समस्या है । तथापि जहाँ तक सम्भव हो सका उन वंशों का संक्षिप्त विवरण मूल उत्पत्ति यहाँ लिखने का प्रयास किया गया। 
ऐतिहासिक क्षत्रिय वंशावली - इसमें मुख्य रूप से चार क्षत्रिय शाखाओं, अग्निवंश, नागवंश (यह पौराणिक भी है) मुनिवंश और दैत्यवंश आदि का वर्णन है । यह चारों मूल रूप से सूर्यवंश और चन्द्रवंश की शाखायें हैं। आगे इन वंशों की भी बहुत सी शाखायें बनीं । जैसे अग्निवंश से चौहान, सोलंकी, प्रमार और परिहार आदि फिर इनमें भी अनेक शाखायें बनती चली गई । जिनका अलग-अलग विवरण आगे लिखा गया है। इसी प्रकार नागवंश, मुनिवंश और दैत्यवंश की शाखाओं प्रशाखाओं का आगे उल्लेख हुआ है ।


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