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Showing posts from 2022

सूर्यवंशी क्षत्रिय सम्राट महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी

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सूर्यवंशी क्षत्रिय सम्राट महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी यह नाम ही विदेशी आक्रमणकारी शत्रुओं व मुगलों के लिये बहुत बड़ी काल के समान था। इन्होनें अवध उत्तर प्रदेश के कौशल(कोसल) राज्य के अन्तर्गत आने वाले सल्हीयपुर नामक नगर को बसाया था जिसे आज संडीला के नाम से जाना जाता हैं, यह सल्हीयपुर(संडीला) आज के भू-भाग से कई अधिक क्षेत्रफल में विस्तृत रूप में इनके शासित राज्य के रूप में फैला हुआ था। सरकारी कागजातों में तो इन्हें Lords Of The Land कह कर सम्बोधित किया गया हैं तथा बताया गया है कि संडीला(सल्हीयपुर) क्षेत्र के स्वामी अर्कवंशी हुआ करते थे, एवं संडीला में वर्तमान में जितने भी खंडहर, कुण्ड, मंदिर है वह सब अर्कवंशीयों द्वारा निर्मित हैं। जब महाराजा पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर मोहम्मद गोरी गजनी ले गया था तो भारत के उस खाली हो चुके नेतृत्व की बागडोर को एक लम्बे अंतराल के बाद महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी ने संभाली जिन्होनें आक्रमणकारी व पैर पसार चुके मुगलों से लोहा लेते हुए अपने कुशल युद्ध नीति व रण कौशल के बल पर अपने राज्य का विस्तार किया, दतली, मलीहाबाद(मल्हीयपुर), काकोरी, कल्यान

अर्कवंशी क्षत्रियों की दुविधा- क्या हम क्षत्रिय हैं?

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अर्कवंशी क्षत्रियों की दुविधा- क्या हम क्षत्रिय हैं? सदियों तक अज्ञानता और गुमनामी के अंधेरों में लुप्त रहने के बाद अब अर्कवंशी क्षत्रियों में अपने इतिहास को जानने व अपनी पहचान को स्थापित करने की ललक जाग उठी है, जिसके फलस्वरूप अर्कवंशी युवाओं के दिमाग में बहुत से प्रश्न उठने लगे हैं। इनमें से कुछ प्रश्न तो स्वभाविक हैं परन्तु कई प्रश्न दूसरे समाज के मूर्ख व अज्ञानी लोगों से बहस करने के कारण पैदा होते हैं। क्या हम क्षत्रिय हैं, यदि हां तो दूसरे हमें क्षत्रिय क्यों नहीं मानते; समाज का पढ़ा-लिखा, संपन्न तबका क्षत्रियों के रूप में स्वीकृत हो भी जाये तो कमजोर व निर्धन वर्ग को कैसे ये मान्यता मिलेगी; क्षत्रिय बनने से कहीं आरक्षण की सुविधा न समाप्त हो जाये - इस प्रकार के कई प्रश्न युवाओं के मन में कौंधते रहते हैं, जिनका समाधान जरूरी है। इन प्रश्नों के उत्तर जानने से पहले ये समझना जरूरी है कि 'क्षत्रिय' शब्द का मतलब क्या है, क्षत्रिय कौन होता है? हिन्दू धर्म की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार जिस वर्ण को शासन व प्रजा की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गयी, उसे क्षत्रिय कहा गया। शुरूआत मे

|| जानिए सूर्य देव के जन्म की कथा ||

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जानिए सूर्य देव के जन्म की कथा सूर्य और चंद्र इस पृथ्वी के सबसे साक्षात देवता हैं जो हमें प्रत्यक्ष उनके सर्वोच्च दिव्य स्वरूप में दिखाई देते हैं। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्य देव की स्तुति की गई है। पुराणों में सूर्य की उत्पत्ति,प्रभाव,स्तुति, मन्त्र इत्यादि विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्त है।     कैसे हुई सूर्य देव की उत्पत्ति   मार्कंडेय पुराण के अनुसार पहले यह सम्पूर्ण जगत प्रकाश रहित था। उस समय कमलयोनि ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उनके मुख से प्रथम शब्द ॐ निकला जो सूर्य का तेज रुपी सूक्ष्म रूप था। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के चार मुखों से चार वेद प्रकट हुए जो ॐ के तेज में एकाकार हो गए।  यह वैदिक तेज ही आदित्य है जो विश्व का अविनाशी कारण है। ये वेद स्वरूप सूर्य ही सृष्टि की उत्पत्ति,पालन व संहार के कारण हैं। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर सूर्य ने अपने

क्षत्रियों की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक महत्व

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क्षत्रियों की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक महत्व पौराणिक पुस्तकों, वेदों एवं स्मृति ग्रन्थों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में आर्यों के लिए निर्धारित नियम थे, परन्तु जाति एवं वर्ण व्यवस्था नहीं थी और न ही कोई राजा होता था। आर्य लोग कबीलों में रहते थे और कबीलों के नियम ही उन पर लागू होते थे। आर्य लोग श्रेष्ठ गुण और कर्म वाले समूहों के अंग थे। आर्यों ने गुणों एवं कर्मों के अनुसार वर्णों की व्यवस्था की थी। उस समय आर्यों का विशिष्ट कर्म यज्ञ करना था। भगवान कृष्ण ने गीता के चतुर्थ अध्याय एवं 13 वें श्लोक में कहा था कि मैंने इस समाज को उसकी कार्य क्षमता, गुणवत्ता, शूर वीरता, विद्वता एवं जन्मजात गुणों, स्वभाव और शक्ति के अनुसार चार वर्णों में विभाजित किया। चातुर्वण्र्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। तस्य कर्तारमपि मां विद्वयकर्तामव्ययम् ।।  श्री कृष्ण ने गीता के तृतीय अध्याय एवं 10 वें श्लोक में कहा है कि ब्राह्मण ने प्रजापति से कहा कि यज्ञ तुम्हारी वृद्धि तथा इच्छित फल देने वाला है। इसके बाद इन आर्यों को गुणों एवं कर्मों के अनुसार चार वर्णों में विभाजित किया। वर्ण व्यवस्था

History of Arkha estate|| अर्कवंशीयों की रियासत ||Arkha Riyasat History || अरखा स्टेट || Arkvanshi

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अरखा रायबरेली जिले की ऊंचाहार तहसील में स्थित ग्राम सभा है। जोकि अपनी राजधानी रायबरेली से लगभग ४० किलोमीटर दूर और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग ११४ किलोमीटर दूर है। १२,००० से भी अधिक की जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में अवधी और हिंदी भाषी लोगों की संख्या बहुतायत हैं।  बात करें रायबरेली के अन्तर्गत आने वाले अरखा के इतिहास की तो इस क्षेत्र पर ब्रिटिश काल से पूर्व ही उत्तर प्रदेश में लंबे समय से शासन कर रहे अर्कवंशी क्षत्रियों का आधिपत्य स्थापित था। इन्हीं अर्कवंशी राजाओं के नाम पर ब्रिटिशकाल में यह क्षेत्र अरखा स्टेट और अरखा रियासत के नाम से प्रचलन में आया। वास्तव में यह अर्कवंशी के 'अर्क' शब्द के अपभ्रंश रूप 'अरक' तत्पश्चात 'अरख' में परिवर्तित होकर स्थानीय बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल होने लगा। जिससे इस क्षेत्र का नाम 'अरखा' पड़ा।  मुगलिया सल्तनत के समय जब तक इस क्षेत्र पर अर्कवंशीयों का शासन स्थापित था तब तक मुगलों के साथ इनका युद्ध संघर्ष जारी रहा। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के आते ही जैसे जैसे मुगल सल्तनत अपने पतन की ओर अग्रसर होता गया। इ

Suryavanshi Arkvanshi Kshatriyon Ki Pratigya || सूर्यवंशी अर्कवंशी क्षत्रियों की प्रतिज्ञा || Arkvanshi Kshatriya

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  अयोध्या भगवान श्रीराम जन्मभूमि पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से जहां भगवान श्रीराम में आस्था रखने वाले जन समुदायों में खुशी की लहर है तो वहीं इससे भी ज्यादा खुशी अयोध्या और पड़ोसी जिले बस्ती सहित संतकबीरनगर , सिद्धार्थनगर एवं आस पास के गांवों में रहने वाले अर्कवंशी - सूर्यवंशी क्षत्रिय समाज में काफी खुशी की लहर देखी जा सकती है।   इसकी भी एक बहुत बड़ी वजह है सूर्यवंशी - अर्कवंशी क्षत्रिय समाज द्वारा ली गई एक प्रतिज्ञा के चलते लगभग 500 साल से भी अधिक समय से इस समाज ने अपने सिर पर पगड़ी नहीं बांधने , पैरों में चमड़े के जूते नहीं पहनने और छतरी नहीं धारण करने का प्रण ले रखा था। प्रदेश में रहने वाली कई लाखों की जनसंख्या वाले अर्कवंशी - सूर्यवंशी क्षत्रिय समाज ने 500 सालों तक कभी भी शादी विवाह में सिर पर पगड़ी नहीं बांधी और सिर को खुला रखने के लिए मौरी को धारण करना शुरू कर दिया था ( जिसमें सिर खुला दिखता है ) जोकि आज भी देखा जा

महाराजा खड़गसेन अर्कवंशी का इतिहास || History Of Maharaja Khadagsen Arkavanshi || Khaga Ka Itihas

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उत्तर प्रदेश राज्य के अन्तर्गत आने वाले खागा फतेहपुर का इतिहास बेहद ही गौरवशाली और रक्तरंजित युद्धों से भरा पड़ा है। वर्तमान में यह फतेहपुर नाम से जाना जाता है, मुस्लिमों के आक्रमण से पहले यह खागा अंतर्देश नाम से जाना जाता था। खागा नगर की स्थापना महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी द्वारा की गई थी। जिनका उस समय शासन गंगा यमुना के दोआबा क्षेत्र पर स्थापित था। महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी अपने पिता महाराजा दलपत सेन अर्कवंशी की तरह ही महत्वकांक्षी और निर्भीक गुणों वाले शासक थे। महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी, वल्लभीपुर स्थापक महाराजा कनक सेन अर्कवंशी की रक्त पीढ़ी से संबंध रखते थे। इन्हीं के वंशजों ने बालार्क और भट्टार्क जैसी उपाधियां धारण की थी। जिनमें सौराष्ट्र (सौर राष्ट्र) की स्थापना करने वाले राजा परमसेन अर्कवंशी थे, इनका एक नाम परमभट्टार्क भी हैं। महाराजा कनकसेन अर्कवंशी अयोध्या नरेश भगवान श्रीरामचंद्र जी के पुत्र लव के वंशज थे। जिन्होंने दूसरी शताब्दी में बर्बरीक जातियों को भीषण चले युद्ध में परास्त करके गुजरात पर अपना शासन स्थापित किया था।  महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी ने मुस्लिम अताताई के उत्तरी भारत