महाराजा खड़गसेन अर्कवंशी का इतिहास || History Of Maharaja Khadagsen Arkavanshi || Khaga Ka Itihas
महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी ने मुस्लिम अताताई के उत्तरी भारत पर आक्रमण के समय ही गुप्त काल के पश्चात १०वीं सदी से पूर्व ही अंतर्देश में दोआबा क्षेत्र पर खागा नगर की स्थापना कर डाली थी। मुस्लिम हमलावरों के साथ महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी का ऐसा भीषण युद्ध चला था दोआबा पर राज स्थापित करने के लिए जिसमें तुर्क देश अफ़ग़ान देश के मुस्लिम हमलावरों की संयुक्त सेना की टुकड़ी बार बार हमले करके भाग जाने की युद्धनीति अपना रही थी। लेकिन महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी ने अपनी समझ बूझ से भरी युद्धनीति का पालन करते हुए दोआबा क्षेत्र पर खागा नगर बनाने का कार्य आरंभ करते ही जो मुस्लिमों की सेना दोनों तरफ से हमले करके गायब हो जाया करती थी। उसे महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी ने केंद्र में निश्चित स्थान पर ला खड़ा किया। जिसका परिणाम यह हुआ की अफगानी और तुर्की मुस्लिमों की संयुक्त हमलावरों के सैनिकों की गर्दन दोनों ओर से कटने लगी। महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी की इस युद्धकला से अफगानी और तुर्की मुस्लिमों में भगदड़ मच उठी। तुर्की अफगान एक दूसरे के युद्धनीतियों को संदेह की दृष्टि से देखने लगी।
इसके बाद इन अफगानी और तुर्की मुस्लिमों की हमलावर सेना ने खिलजियों से महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी के विरूद्ध युद्ध के लिए साथ मांगा। लेकिन उन मुस्लिम हमलावरों की यह नीति भी खिलजियों के लिए काल बन बैठी और खिलजी सेना परास्त हुई। महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी द्वारा लड़े गए इस चार पक्षीय युद्धों में उनके विश्वासपात्र सेनापति वीर समरजीत सिंह ने बखूबी अपना साथ निष्ठापूर्वक निभाया। युद्ध की विकरालता को देखते हुए इस्लामी हमलावरों की सेना पराजय की स्थिति में पहुंचता और अपने हताश हो चुके मुस्लिम सैनिकों को लड़ने के लिए शम्स उद दीन (इस्लाम की औलाद) जैसे इस्लामी उपाधियों से उनमें लड़ने का उत्साह भरने लगा। दोनों ओर से हुए इस भीषण युद्धों के बाद अंततः महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी की सेना की विजय हुई और खागा नगर को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने अंतर्देश राज्य पर अर्कवंश की प्रभूसत्ता को स्थापित करते हुए दशाश्वमेध यज्ञ भी कर डाला। वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर उन्होंने अर्कवंशीयों की कुल देवी माता शीतला के नाम से शीतला घाट का निर्माण भी करवाया। महाराजा खड़ग सेन अर्कवंशी ने प्रयागराज के भूभाग पर भी अपना शासन स्थापित किया। इसके पश्चात खागा के आस पास और कोट गांव आदि मे अभी भी अर्कवंशीयों के गौरवशाली इतिहास की निशानी देखी जा सकती है। इसके साथ ही साथ अर्कवंशी शासकों के फतेहपुर से जुड़े भी कई गौरवशाली इतिहास है जिनमे अर्कवंशीयों के अधीन 8 गढ़ थे जिन पर उनका आधिपत्य चलता था जिस कारण अर्कवंशीयों को अष्टगढ़ नरेश (अठगढ़िया नरेश) (अर्थात् आठ गढ़ों या किलों वाला राजा) कहा जाता था। अष्ठगढ़ नरेश महाराजा महिपति सेन अर्कवंशी ने अपने शासनकाल में कुण्ड, कुओं व अर्क मन्दिरों का निर्माण करवाया। इनके शासन काल के समय भगवान अर्क व भगवान शिव की उपासना का बड़ा केन्द्र फतेहपुर को माना जाता था जिसका प्रमाण आज भी फतेहपुर में उपस्थित अर्कवंशी शासकों के खण्डहरों में परिवर्तित हो चुके महलों की निशानी देखने को मिल जाती हैं। परन्तु 14वीं सदी में अथगढ़िया नरेश राजा सीतानंद सेन अर्कवंशी को मुस्लिम शर्की dynasty के शासक शम्सउद्दीन इब्राहीम शाह और सेंगर वाली सेना से विश्वासघात मिलने के कारण हार का सामना करना पड़ा।
फतेहपुर के दैनिक संवाद गौरव के खागा विशेषांक मे प्रकाशित लेख में एक लेख विकास के आइने मे खागा का अतीत के लेखक रविकुमार तिवारी लिखते हैं- कि, खागा नगर के इतिहास की जितनी बात की जाए उतनी ही कम है इसका इतिहास अर्कवंशी क्षत्रियों से जुड़ा रहा है और इसे अर्कवंशीयों ने इस नगर को बसाया है। फतेहपुर के अयाह में मौजूद अर्कवंशी शासकों के किले गढ़िया दुर्ग आज भी खंडहरों के रूप में उनके गौरवशाली इतिहास की गाथा सुना रहा है।
||||जय श्री राम जय क्षत्रिय समाज जय राजपुताना ||||
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