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क्षत्रियों की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक महत्व

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क्षत्रियों की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक महत्व पौराणिक पुस्तकों, वेदों एवं स्मृति ग्रन्थों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में आर्यों के लिए निर्धारित नियम थे, परन्तु जाति एवं वर्ण व्यवस्था नहीं थी और न ही कोई राजा होता था। आर्य लोग कबीलों में रहते थे और कबीलों के नियम ही उन पर लागू होते थे। आर्य लोग श्रेष्ठ गुण और कर्म वाले समूहों के अंग थे। आर्यों ने गुणों एवं कर्मों के अनुसार वर्णों की व्यवस्था की थी। उस समय आर्यों का विशिष्ट कर्म यज्ञ करना था। भगवान कृष्ण ने गीता के चतुर्थ अध्याय एवं 13 वें श्लोक में कहा था कि मैंने इस समाज को उसकी कार्य क्षमता, गुणवत्ता, शूर वीरता, विद्वता एवं जन्मजात गुणों, स्वभाव और शक्ति के अनुसार चार वर्णों में विभाजित किया। चातुर्वण्र्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। तस्य कर्तारमपि मां विद्वयकर्तामव्ययम् ।।  श्री कृष्ण ने गीता के तृतीय अध्याय एवं 10 वें श्लोक में कहा है कि ब्राह्मण ने प्रजापति से कहा कि यज्ञ तुम्हारी वृद्धि तथा इच्छित फल देने वाला है। इसके बाद इन आर्यों को गुणों एवं कर्मों के अनुसार चार वर्णों में विभाजित किया। वर्ण व्यवस्था