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Showing posts from April, 2018

सूर्यवंशी (अर्कवंशी) क्षत्रिय कुल देव एवं क्षत्रिय साम्राज्य वंशावली

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सूर्यवंशी (अर्कवंशी) क्षत्रिय कुल देव एवं क्षत्रिय साम्राज्य वंशावली--------->>> सूर्यवंशी (अर्कवंशी)   क्षत्रियों के पूर्वज एवं वंशज भगवान सूर्य "अर्क" देवता के उपासक रहे है,  और उन्हें अपना कुल देव मानते हैं... सूर्यवंश (अर्कवंश)  में अनेकों प्रतापी राजा-महाराजा हुए उन्होंने बहुत ही संघर्ष करके सत्य मार्ग पर चलकर अपने वंश को आगे बढ़ाया वो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राणो को बलिदान कर देते..  सदैव अपने राज्य की रक्षा करके सत्य मार्ग पर अडिग रहे...                                                                                                                                                       सूर्यवंश (अर्कवंश)  में  प्रभु श्री रामचंद्र जी  ने जन्म लिया अनेकों दुःख उठाये अपने वचन को निभाने के लिए,  14 वर्षो का वनवास उठाया...  इसी वंश में  महाराजा हरिश्चंद्र  जी हुए उन्होंने अपने वचन को निभाने के लिए  अपना राज्य-पाट सबकुछ दान कर दिया अनेकों कष्ट उठाये परन्तु सत्यमार्ग को नहीं छोड़ा.. इसी वंश में  महाराजा तिलोकचंद अर्कवंशी  हुए   जिन्होंने इंद्रप्रस्

अर्ककुल शिरोमणि श्री राम सूर्यवंश का वंश

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"अर्ककुल शिरोमणि श्री राम"  सूर्यवंश का वंश  (सूर्यवंशम,अर्कवंशम या सौर वंश ) आर्यावर्त का प्राचीन पौराणिक वंश है ।  अयोध्या, अवध व उत्तर प्रदेश के सूर्यवंशी राजाओ ने द्वापर युग समाप्त हो जाने के पश्चात जब भगवान् श्री हरि विष्णु ने बुद्ध अवतार लिया तो उसका एकमात्र उद्देश्य यही था की , जिस प्रकार से मनुष्यो में हिंसा की भावना बढ़ रही है और वह अपने वैदिक यज्ञो के कार्यो में भी बलि प्रथा को अपना रहे है या उनसे इस प्रकार के कार्यो को करवाने के लिए विवश किया जाता हो या पूर्वजो की परम्परा याद दिलाई जाती हो जिनसे अनावश्यक ही लोगो में हिंसा की भावना जाग्रत होने लगी थी और पशुओं पर अत्याचार भी होने लगे थे तथा ऐसे ही कई अंधविश्वासों को समाप्त करने के लिए बुद्ध अवतार लिया था  और एक नए युग में मनुष्यो को अहिंसापूर्वक शांति से रहने का उदाहरण मानव समाज के समक्ष रखा था ।  चूँकि भगवान बुद्ध ने सूर्यवंश के शाक्य कुल में जन्म लिया था तो उनकी दी हुई महत्वपूर्ण शिक्षा को आगे बढ़ाने और यज्ञो में से पशु बलि को समाप्त करने के लिए " सूर्यवंशी राजाओ ने देव भाषा " संस्

अर्कवंशी (सूर्यवंशी ) क्षत्रिय

अर्कवंशी ( सूर्यवंशी )  क्षत्रिय------>>>> अर्कवंशी क्षत्रिय भारतवर्ष की एक प्राचीन क्षत्रिय जाति है और सूर्यवंशी क्षत्रिय परम्परा का एक अभिन्न अंग है। कश्यप के पुत्र सूर्य हुए। सूर्य के सात पुत्रों में से एक वैवस्वत मनु हुए जिन्हें अर्क-तनय (यानि सूर्य के पुत्र) के नाम से भी जाना गया। इन्हीं वैवस्वत मनु ने अपने पिता सूर्य के नाम से 'सूर्यवंश' की स्थापना की। प्राचीन काल से ही 'सूर्यवंश' अपने पर्यायवाची शब्दों, जैसे आदित्यवंश, अर्कवंश, रविवंश, मित्रवंश इत्यादि के नाम से भी जाना जाता रहा। उदाहरण के तौर पे रामायण आदि प्राचीन ग्रंथों में 'सूर्यवंश' कुलज रामचन्द्रजी को 'अर्ककुल शिरोमणि', 'रविकुल गौरव' इत्यादि के नाम से भी पुकारा गया है। कहने का सार ये है कि सूर्यवंश कुल के क्षत्रिय स्वयं को 'सूर्यवंश' के पर्यायवाची शब्दों से भी संबोधित करवाते रहे। समय के साथ 'सूर्यवंश' के पर्यायवाची शब्दों जैसे 'अर्कवंश', 'आदित्यवंश', 'मित्रवंश' इत्यादि के नाम पर सूर्यवंश की समानांतर क्षत्रिय शाखाएं स्थाप

भगवान शिव की उपासना, उनका ध्यान

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ॐ नमः शिवाय     भगवान शिव की उपासना, उनका ध्यान------->>>> सम्पुर्ण जगत में भगवान शिव के समान कोई नही हैा उनकी उपासना से बढ़कर कोई उपसाना नही है एवं उनके मंत्रो से बढ़कर कोई मंत्र नही हैा मनुष्य योनि प्राप्त करना तभी सफल है जब यह भगवान शिव की सेवा एवं भक्ति में समर्पित हो जाये । भगवान शिव को प्रसन्न करना ही मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए । जिस व्यक्ति ने इस जन्म में भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया, उसके लिए करने को कुछ शेष नही रह जाता । वैसे तो भगवान शिव को प्रसन्न करने की कोई विधि नही है क्योंकि वो अपने भक्तों पर कब और कैसे प्रसन्न हो जायें ये कोई नही जानता फिर भी गुरूओं के मुख से जो कुछ भी प्राप्त हुआ उसके अनुसार व्यक्ति को साधना करनी चाहिए । भगवान शिव का षडाक्षरी मंत्र सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वशक्तिशाली मंत्र हैा इस मंत्र के जप से आध्यात्मिक विकास होता है एवं अन्त में मोक्ष प्राप्ति होती हैा इस संसार के सभी ऐश्वर्य एवं भोग शिव साधक के आगे नतमस्तक रहते हैा कोई दुख अथवा कष्ट भगवान शिव के साधक को नही छू सकता । शिव योगी सदैव निरोगी रहता है एवं 100 वर्ष की आयु पूर्ण कर मोक्ष

अर्कवंशी क्षत्रियों का संक्षिप्त इतिहास

                                   अर्कवंशी क्षत्रियों का संक्षिप्त इतिहास-------->>>>>> अर्कवंश भारतीय मूल का एक प्राचीन क्षात्रिय वंश है। चूकि प्राचीन भारत में इतिहास लेखन की परम्परा ही नही थी, अतः अन्य क्षत्रिय वंशो की तरह ही अर्कवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति से सम्बन्धित विभिन्न स्त्रोतो से अलग-अलग मत एवं उल्लेख प्राप्त होते है । इन विभिन्नो मतो से सिद्ध होता है कि अर्कवंश सिर्फ एक शाखा नही बल्कि सूर्यवंश का पर्यावाची शब्द है, जो कि प्राचीनकाल से ही सूर्यवंशी क्षत्रियों द्वारा प्रयुक्त किया जा रहा हैं। अलग-अलग कालों में सूर्यवश के अन्तर्गत कई अर्क नामधारी राजा हुए। कालान्तर में इन अर्क राजाओं की वंश परम्पराए(पीढ़िया) सूर्यवश की समानान्तर शाखाओें के रूप में स्थापित हो गयी तथा इनके वंशधर अर्कवंशी क्षत्रिय कहलाए। अर्कवंशी क्षत्रिय सूर्य को कुलदेवता मानते थे तथा सूर्य के उपासक थे। पौराणिक ग्रन्थो के अनुसार राजा कश्यप के पुत्र सूर्य थे तथा सूर्य के द्वादश पुत्रो में से दूसरे पुत्र आर्यमा तथा सातवे पुत्र वैवस्वत मनु थे, जिन्हे ‘अर्क तनय’ के नाम से जाना जा

सूर्यवंश ( अर्कवंश ) का संक्षिप्त परिचय

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सूर्यवंश ( अर्कवंश ) का संक्षिप्त परिचय----->>> कुक्षि के कुल में भरत से आगे चलकर, सगर, भागीरथ, रघु, अम्बरीष, ययाति, नाभाग, दशरथ और भगवान राम हुए। उक्त सभी ने अयोध्या पर राज्य किया। पहले अयोध्या भारतवर्ष की राजधानी हुआ करती थी बाद में हस्तीनापुर हो गई। इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे। इसी इक्ष्वाकु वंश में बहुत आगे चलकर राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वसिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर बनें। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची। राजा सगर के दो स्त्रियां थीं-प्रभा और भानुमति। प्रभा ने और्वाग्नि से साठ हजार पुत्र और भानुमति केवल एक पुत्र की प्राप्ति की जिसका नाम असमंजस था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है। रघु कुल : सूर्य वशं को आगे ब