सूर्यवंशी क्षत्रिय सम्राट महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी

सूर्यवंशी क्षत्रिय सम्राट महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी
यह नाम ही विदेशी आक्रमणकारी शत्रुओं व मुगलों के लिये बहुत बड़ी काल के समान था। इन्होनें अवध उत्तर प्रदेश के कौशल(कोसल) राज्य के अन्तर्गत आने वाले सल्हीयपुर नामक नगर को बसाया था जिसे आज संडीला के नाम से जाना जाता हैं, यह सल्हीयपुर(संडीला) आज के भू-भाग से कई अधिक क्षेत्रफल में विस्तृत रूप में इनके शासित राज्य के रूप में फैला हुआ था। सरकारी कागजातों में तो इन्हें Lords Of The Land कह कर सम्बोधित किया गया हैं तथा बताया गया है कि संडीला(सल्हीयपुर) क्षेत्र के स्वामी अर्कवंशी हुआ करते थे, एवं संडीला में वर्तमान में जितने भी खंडहर, कुण्ड, मंदिर है वह सब अर्कवंशीयों द्वारा निर्मित हैं। जब महाराजा पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर मोहम्मद गोरी गजनी ले गया था तो भारत के उस खाली हो चुके नेतृत्व की बागडोर को एक लम्बे अंतराल के बाद महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी ने संभाली जिन्होनें आक्रमणकारी व पैर पसार चुके मुगलों से लोहा लेते हुए अपने कुशल युद्ध नीति व रण कौशल के बल पर अपने राज्य का विस्तार किया, दतली, मलीहाबाद(मल्हीयपुर), काकोरी, कल्यानमल, हरदोई से लेकर मुरादाबाद आदि स्थानों तक अपना प्रभाव छोड़ा तथा अपनी प्रजा का कुशल पालन किया तब जब भारतवर्ष पर मुगलों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। इनके शासन काल में शत्रुओं से रक्षा के लिये नगर की इतने कड़े सुरक्षा के बंदोबस्त हुआ करते थे की शत्रु सीमा तक पहुँचने से पहले ही अपने प्राण त्याग देता था। नगर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये इन्होनें कई गढ़ियों का निर्माण करवाया था जैसे- गढ़ी जिन्दौर, तरौना, नौगढ़, सल्हीयजना, सामदखेड़ा, मुसलेवा(परिवर्तित नाम) सरसेंडी, दातली, बिजनौरगंज, मुरादाबाद, लौहगांजर पर ये गढियां टीलों के रूप में इस महान शासक की कुशल युद्ध नीति का प्रमाण दे रही हैं। इनकी इसी नीति से तुर्की आक्रमणकारी बहुत परेशान रहते थे। कई बार विध्वंसक युद्ध हुआ लेकिन इनकी युद्ध कौशल से तुर्की सदैव डरते थे। सन् 1236 ई0 के शासन काल में तुर्की शम्सुद्दीन अल्तमश(इल्तुमिश) के द्वारा कई बार आक्रमण किये गये और असफल रहे अर्कवंशियों के द्वारा 160 वर्षों तक सण्डीला और अन्य क्षेत्रों पर अर्कवंश अधिपति रहे।
मुहम्मद शाह तुगलक के राज करने से परेशान लोगों ने भागकर अपनी जान बचाने के लिये सण्डीला राज्य में शरण लेने लगें। यह नगर देखते देखते काफी विशाल भू-भाग में व्याप्त हो चुका था और जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा हुआ आक्रमणकारी तुगलक को इस राज्य के विस्तार व खुशहाली के बारे में पता चला तो सण्डीला पर आक्रमण करने आया और असफल रहा फिर उसने फतेहपुर के लिये योजना बनाई जिसमें वह पुनः असफल रहा फतेहपुर में भी अर्कवंशीयों का शासन था दोबारा उसने 1374 ई0 में अपने पीर भाई सैय्यद मखदूम अलाउद्दीन को सण्डीला(सल्हीयपुर) पर आक्रमण कर जीतने की आज्ञा दी सन् 1374 ई0 में मखदूम अलाउद्दीन की विशाल क्रूर आक्रमणकारी सेना ने सल्हीयपुर(सण्डीला) पर आक्रमण कर दिया। जिसमें सैय्यद मखदूम अलाउद्दीन के तीनों बेटों को महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी के पुत्र ने अपनी तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इस्लामिक आक्रमणकारियों ने अपनी यह दशा देखकर भागने लगी लेकिन इसने अपनी सेना को मर मिटने की आज्ञा दी फिर क्या था युद्ध भीषण से विकराल हो चुका जितना महाराजा की सेना इन आक्रमणकारियों को गाजर-मूली की तरह काटती जा रही थी उतनी ही इनकी संख्या बढ़ती जा रही थी युद्ध में छल कपट की नीतियाँ अपनाई जाने लगी जिसमें बहुत से महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी की सेना के सैनिक वीरगति को प्राप्त होने लगे यह देखकर क्षत्राणियों नें अपने स्तर से युद्ध लड़ना शुरू कर दिया पर आक्रमणकारी सेना जितनी कटती जाती उतनी और बढ़ती जा रही थी युद्ध में जब हार दिखने लगी तब क्षत्राणियों ने जौहर कर लिया अतः जब महल में कोई नही बचा तो इन आक्रमणकारियों ने महलों को, मंदिरों को गढियों को नष्ट कर दिया।

🚩🚩जय मां भवानी 🚩🚩
       🚩🚩जय क्षत्रिय धर्म 🚩🚩
              🚩🚩जय राजपुताना🚩🚩
🚩🚩जय जय श्री राम 🚩🚩

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