नाग वंश गरुण वंश तथा जटायु वंश का इतिहास

नाग वंश - कश्यप को क्रोधदशा (६) नामक पत्नी से जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम नाग था । इसी नाग के वंशज नाग वंशी कहलाये। आगे चलकर इन नाग वंशियों की सात शाखायें हो गई । इन सातों शाखाओं के सात मूल पुरुष कर्कोटक सर्प, बासु की नाग, काश्यप नाग, कुन्ड नाग, महानाग, तक्षक नाग तथा एलपात्र नाग थे । कर्कोटक सर्प से सर्प वंश, वासुकी से वासुकी नाग वंश, काश्यप से मुख्य काश्यप नाग वंश, कुन्ड से कुन्ड नाग वंश महानाग से शेष नाग वंश, तक्षक से तक्षक नाग वंश और एलपात्र से एल नाग वंश चला ।

वर्तमान तुकिस्तान का नाम पहले नाग लोक था और अधिकांश तुर्क ही नाग वंशी हैं। इन तुकों की उपजातियां, से सवासक आदि, शेष और वासुकि नाग के नाम पर हैं । उत्तरी तुकिस्तान के पहले गिरगिस तथा उसके बहुत बाद में काम्बोज कहा जाने लगा । यह स्थान प्राचीन नाग वंश का निवास स्थान था। गरुड़ वश जो नागवंश के विमात्रिक भाई थे, नागों पर आक्रमण करके उन्हें पराजित कर दिया, इससे मुख्य नागवंश अपना नाग लोक ( तुर्किस्तान) छोड़कर क्षीर सागर (अराल सागर) के क्षेत्र में जा बसे । इस विषय में इतिहास- कार नन्दलाल कृत रसातल नामक पुस्तकों में भो उल्लेख पाये जाते हैं । विष्णु पुराण के. अनुसार, एलपात्र, अश्वतर शेष कर्कोट कआदि सुरसा के पुत्र थे, किन्तु मार्कन्डेय पुराण के अनुसार कुछ मतभेद है । मार्क पुराण के अनुसार अश्वतर नाग का राज्य सिन्धु के किनारे उत्तर ओर था । काबुल, यूसेफजाई, हसन, अब्दुल और टोर्चारिस्तान आदि नागों के राज्य थे। पहले सीरिया पर भी नाग वंशियों का शासन था । (देखें प्रशिया का इतिहास खण्ड प्रथम ) । इसमें उल्लेख है कि--

is hok, Is hok Aj Dahak family of Syria, अर्थात् इशहाक तथा अजदाहक वंश सीरिया में था । शेष नाग का आधिपत्य ईलाम में भी था । (Shashnok family of elam, 2400 B. C. ) ( History of Pertia Val. I)।

इस शेष नाग वंश पर बाद में विष्णु वंशियों ने अधिकार कर लिया था जिससे विष्णु को शेषशायी कहा जाता है । विष्णु की दो राजधानियाँ थीं। एक क्षीर सागर में जहाँ नाग वंशियों का निवास था तथा दूसरा, गिरेडीसिया जो वैकुण्ठ धाम के पास था और जहाँ गरुड़ वंशियों का निवास था । वैसे विष्णु ने अनेक राज्यों को जीतकर अपने आधीन कर लिया था किन्तु विष्णु को रहने के लिये उन्हें दो स्थान अधिक प्रिय थे, एक नाग लोक-क्षीर सागर तथा दूसरा गरुण का स्थान वैकुण्ठ धाम था । (क्षीर सागर अरल सागर, वैकुण्ठ धाम- शुवा नगर ) ।

नागों की बात मुख्य शाखाओं से बाद में अनेकों उपशाखायें वन गई, जो पृथ्वी पर चारों ओर फैली तथा बसती चली गई। उन्हीं उप-शाखाओं में नागों की मात्रा का भी थी। जिसका वर्णन दिनता (गरुणों की माता) के साथ पुराणों में वर्णित है। किन्तु यह कथा अनेक कल्पित आधारों पर लिखकर रहस्यमय बना दी गई है। पुराणों में जो रेखा चित्र कथानक के आधार पर रचे गये वह भी कल्पित ही प्रतीत होते हैं। कद्र, विनता को मानवी स्वरूप देते हुये उनसे कल्पना कारों ने विडज सृष्टि के स्थान पर अंडज सृष्टि करा दी गई है। माता मानवी तथा उनके पुत्र जाँच तथा पक्षी के पुत्र में कल्पित रांगते तथा उड़ते दिखाये गये हैं। तक्षक को विषधर सर्व मानकर परिक्षित को दंश कल्पित कराया गया है। इस सृष्टि का नियम जो सृष्टि के आदि से अब तक एक समान बने हुये हैं, उनमें फेर-बदल करके ऐसी रचना कल्पित आधारों पर की गई है। जिससे समाज के अन्धविश्वास की जड़े गहरी होती चली गई । यद्यपि आजका विद्वान इसका अन्ध अनुसरण नहीं करता, तब भी यह प्रश्न सभी के सामने है कि यह अन्धविश्वास किस प्रकार दूर हो और लोग किस प्रकार सत्य को पहचानें ।

कुछ पुराणों के लेखानुसार यह नाग वंश अनेक स्थानों में फैल गया। देश काल और परिस्थिति के अनुसार कुछ नाग वंशीय देवों में, कुछ दैत्यों-दानवों में, कुछ आयों में, कुछ यक्षों में, कुछ राक्षसों में और बहुत समय बाद कुछ अरव क्षेत्रीय नाग तुकों में मिल गये। महा भारत युद्ध में भी अनेक नाग राजा कौरव तथा पाण्डवों की सेना में थे । महाभारत युद्ध के बाद जब भारत में कोई शक्तिशाली राजा नहीं रह गया तव अन्य जातियों की तरह यह नाग वंशीय लोगों ने यत्र-तत्र अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिये । तैत्तिरीय आरण्यक के लेखों से संकेत मिलता है कि कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने के बाद जरासिंधु ने मथुरा पर अधिकार कर लिया था । जरासंध के मरने पर मथुरा पर नागों ने अधिकार कर अपना राज्य स्थापित किया। महाभारत युद्ध में पंजाब के लगभग सभी राज्य नष्ट-भ्रष्ट हो गये थे, अस्तु नाग वंश के लोगों ने तक्षशिला तथा मथुरा दोनों स्थानों पर अपने राज्य सुदृढ़ कर अन्य राज्य भी स्थापित कर लिये । वायु तथा ब्रह्म पुराण के अनुसार मथुरा तथा तक्षशिला मिलाकर सात नाग राज्य तथा कहीं-कहीं ग्यारह नागों के राज्यों का भी संकेत मिलता है। नाग वंशियों के कुछ नाम भी मिलते हैं जिन्होंने वहाँ अपने राज्य स्थापित किये अथवा वह महा सेनापति थे। उन नामों से वासुकि, नीलाक्त, कोणप, पिच्छल, शल, चक्रपाल, हलीमक, कालवेग, प्रकालग्ण, सुशरण, हिरण्य बाहु, तक्षक वंश का कालदंतक, तक्षक पुत्र शिशुरोम, महाहनु, महानाग, पुच्छान्डिक, भान्डलक उच्छिम, छरम, भडा, शिली, शलकेंर, शुक तथा प्रवेयन आदि नाग तथा तक्षक वंशीय थे । इन ७ या ११ मान्डलीक राज्यों के ऊपर शेषनाग नामक सम्राट का भी पता चलता है। उपरोक्त नाग वंशियों के नामों में वासुकी, काल दंतक (तक्षक वंश) शिशुरोम, महाहनु तथा महानाग आदि राजा थे तथा अन्य नाग सेना नायक थे ।

ज्ञातव्य है कि राजा परीक्षित से इन्हीं तक्षकों तथा नागों का युद्ध हुआ जिसमें परीक्षित मारा गया तथा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने युद्ध कर इन नागों को विजय कर पितृघाती नागों को अग्नि कुन्ड में जीवित जला डाला था । परीक्षित को तक्षक काटने ( इसने ) तथा नाग- यज्ञ में जन्मेजय द्वारा उन्हें भस्म करने की कथा बाद में कल्पित आधार पर गढ़ ली गई प्रतीत होती है । कुछ विद्वानों का अनुमान है कि जन्मेजय से हारकर कुछ नाग वंशीय लोग भागकर असम की तरफ चले गये, जहाँ वह नागा नाम से अब भी विख्यात है किन्तु इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता। इस प्रकार भागवत पुराण को तरह अनेक पाखण्ड लेख गढ़ कर पाखंडियों ने समाज को भ्रमित और अन्धविश्वासी बना डाला है ।

गरुड़ वंश तथा जटायु वंश - कश्यप की पत्नी ताम्रा (१०) से एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम गरुड़ रक्खा गया। गरुड़ के वंशजों की आगे चलकर छः शाखायें हो गई जिनके नाम गरुड़ वंशी, तार्क्ष्य गरुण अरिष्ट नेमि गरुड़, असित ध्वज गरुड़, अरुण तथा आरुणि गरुड़, तथा जटायु वंशी गरुड़ हुये ।

विष्णु को ईश्वर का अवतार माना गया है, यद्यपि विष्णु प्रथम के समय में यह गरुड़ तथा नाग वंशियों को उत्पत्ति भी नहीं हुई थी, किन्तु पुराणों में विष्णु की नागशया तथा गरुड़ वाहन का वृतान्त प्राप्त होता है । इससे यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि जब विष्णु की सात पीढ़ी बाद यह गरुड़ तथा नाग लोग पैदा हुये तो उनके वंशजों की संख्या भी उनके चौदह-पन्द्रह पीढ़ी बाद ही बढ़ी और उनका वंश प्रसिद्ध हुआ । इस प्रकार विष्णु की बाईसवीं या तेईसवीं पीढ़ी के विष्णु ने नागों और गरुड़ों को अपने आधीन कर शासन किया होगा । विष्णु की दो राजधानियों का संकेत हमें पुराणों से प्राप्त होता है। एक राजधानी वैकुण्ठ नामक नगर में तथा दूसरी क्षीर सागर के तट पर थी, जब विष्णु वैकुण्ठ में रहते थे तो वहाँ गरुड़ लोग- वाहन का कार्य करते थे और जब क्षीर सागर में रहते थे तो वहाँ नाग वंश के लोग सेवा करते थे । विष्णु द्वारा दो राजधानी बनाने का कारण यह था कि नाग वंश और गरुण वंश के लोग एक दूसरे से घोर शत्रुता रखते थे और सदैव आपस में लड़ते रहते थे, इन्हीं कारणों से विष्णु को अपने राज्य में दो राजधानी बनाना पड़ा। नागों और उनके विमात्रित भाई गरुणों का आपस में लड़ना वो पुराणों में विख्यात है और वास्तव में यह दोनों वंश बड़े लड़ाकू और योद्धा थे, क्योंकि इन्हीं की सेना लेकर विष्णु ने बड़ी-बड़ी विजय प्राप्त किया था। जैसा कि नाग वंश के लेख से ज्ञात होता है कि पहले नागों का निवास गिरगिस में था, किन्तु गरुड़ वंशियों ने उन्हें वहाँ से पराजित कर क्षीर सागर के तट पर बसने को बाध्य कर दिया था। गरुड़ों का निवास संभवतः वैकुण्ठ धाम के आस-पास के क्षेत्र में ही था। बाद में गरुड़ों की एक शाखा जटायु वंश की भारत में आई और भारत के दक्षिणी कूलों पर बस गई। इसी जटायु वंश का वीर जो गरुणों की ३६ या ४०वीं पीढ़ी का पुरुष था, सीता हरण के अवसर पर रावण से युद्ध करके घायल हुआ था । उसी का भाई बंधु संपाति भी था जिससे हनुमान को रावण और उसकी लंका का रास्ता बनाया था।

यह गरुड़ तथा जटायु वंशी उन्हीं कश्यप के वंशधर थे जिनके वंशधर राम भी थे। इस बात को जटायु जानता था, इन्हीं कारणों से जटायु अपने कुल की वधू सीता का हरण होते देख वह रावण से युद्ध कर घायल हुआ था। इस बात का स्पष्ट संकेत हमें रामायण से प्राप्त होता है ।

कुछ पुराणों के भाष्यकारों ने नाग वंश को साँप और गरुड़ तथा जटायु वंश को पक्षी मान कर मनगढ़ंत कथा लिख वाला है, किन्तु ऐसा नहीं है। वास्तव में यह लोग कश्यप के वंशधर मनुष्य हैं और अब ईसाई तथा मुस्लिम धर्म ग्रहण करके अपना नाम बदल लिया है। इनका मुख्य निवास वर्तमान अफगानिस्तान के उत्तर जो मुख्य तुर्किस्तान है उसके उत्तरी मैदानों में जहां गिरेडीसिया हैं वहां यह लोग रहते हैं। इन तुकों का मुख्य गोत्र नाग तथा गरुड़ है । इस सम्बन्ध में पर्शिया का इतिहास खण्ड प्रथम तथा ईरान का इतिहास पढ़ने से हमें यह विवरण प्राप्त होता है। पुराणों को नाग गरुड़ कथायें रहस्यवाद प्रकट करती हैं, किन्तु ऐति- हासिक आधार बहुत अंशों में सुरक्षित है। पुराणों की यह देन भी महान है।

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