दैत्य दानव वंश का इतिहास

दैत्य वंश - कश्यप की पत्नी दिति से जो दो पुत्र देव तथा दैत्य हुये, उनमें देव जाति का वर्णन आप पढ़ चुके और दैत्य वंश का विवरण इस प्रकार है-

दिति कश्यप की ज्येष्ठ पत्नी थी तथा दिवि का पुत्र दैत्य भी ज्येष्ठ ही था, इसलिये दैत्य वंश भी कश्यप के अन्य वंशजों से ज्येष्ठ माना गया। कश्यप का राज्य काश्यप समुद्र तट पर था, अस्तु दैत्यों का राज्य भी बंटवारे में कास्पियन तट के आस-पास ही मिला । कश्यप- अदिति के वंशज आदित्यों का तथा देवों की राज्य सीमा दैत्यों से मिली हुई थी, जिसके कारण देवों-दैत्यों तथा 'आदित्यों-दैत्यों से आये दिन झगड़े-झनैले हुआ करते थे । पुरातत्व विज्ञ जिस "हीलियोलिथिक" सभ्यता का वर्णन करते हैं, वह दैत्यों की ही सभ्यता थी। उसकी एक शाखा अमेरिका में “मय सभ्यता" के रूप में विकसित हुई, जिसमें दैत्यों तथा दानवों की मिली-जुली संस्कृति थी। दूसरी मित्र में मेसोपोटामियाँ तथा तीसरी बेबीलोन में असुरों के नाम से प्रसिद्ध हुई। दैत्य वंश का पौराणिक वंश वृक्ष तालिका ४ की तरह है-

दैत्य पुत्र हिरण्य हिरण्याक्ष और हिरण्य कश्यप बड़े प्रतापी थे, उन्होंने अनेकों देवों को राजच्युत करके दैत्य सभ्यता का विकास किया । हिरण्य कश्यप का पुत्र प्रह्लाद अपने पिता का ज्येष्ठ न होकर भाइयों में चौथा था, इस कारण राज्य को अधिकारी नहीं बन सका । अनधिकृत राज्य हथियाने के लिये प्रह्लाद अपने पिता के शत्रु विष्णु से मिलकर अपने पिता के विरुद्ध एक षड्यन्त्र किया, अस्तु विष्णु ने राजा नृसिंह (नृग ) को हिरण्य कश्यप से लड़ा दिया, नृसिंह (नृग) सूर्य के पौत्र इक्ष्वाकु के छोटे भाई थे, जिन्हें पौराणिक भाष्यकरों ने नृसिंह अवतार की कल्पना करके प्रहलाद के प्रति एक कल्पित रूपक रच डाला) नृसिंह ने हिरण्य कश्यप को मार कर प्रह्लाद को वहाँ का राजा बना दिया । बाद में वेबीलोनियाँ जय किया । हिरण्य कश्यप एक स्वतन्त्र राजा था, किन्तु प्रहलाद अब देवों का करद राजा बन गया । प्रहलाद की कथा भागवत तथा शतपथ ब्राह्मण में वर्णित है । यही वर्णन पर्शिया के इतिहास खंड १ के पृष्ठ ५४-५५ में भी लिखा गया है, जिसमें नृग के वंशधर नृगिटों तथा उनके मूल पुरुष नरसिंह ( Naramsin ) का वर्णन है । कल्पनाकारों ने नृसिंग को गिरगिट बना दिया । प्रहलाद के बड़े भाई हाद के दो पुत्र वातापि तथा इल्वल महान योद्धा थे, इनकी २२वीं पीढ़ी में हेति और प्रहेति दो दैत्य बंधु बड़े प्रतापी हुये । इन दोनों दैत्य बन्धुओं ने सर्वप्रथम लंका नगर की नींव डाली तथा स्वर्ण लंका नगर बसाया । इन दोनों भाइयों को जब पैंतालिसवें विष्णु ने युद्ध करके नष्ट कर दिया स्वर्ण लंका बहुत दिन तक खाली सूनी पड़ी रही । जब पुलस्त का पोत्र या वैश्रवा का पुत्र कुवेर समर्थ हुआ तो उस खाली- सूनी लंका को फिर से बसाकर अपना राज्य स्थापित किया। यह बात हेति दैत्य के प्रपौत्र सुमाली को सहन नहीं हुई, उसने सोचा कि मेरे पूर्वज दैत्यों की लंका थी जिसमें अन्य वंश अब राज्य कर रहा यह सोचकर सुमाली दैत्य ने अपनी चारों कन्या का विवाह पुलस्त पुत्र वैश्रवा से कर दिया, जिसके फलस्वरूप दैत्य पुत्री कैकसी के वैश्रवा से रावण, कुम्भीनसी से कुम्भकर्ण, राका से विभीषण तथा पुष्पा से पुत्री सूपर्णखा का जन्म हुआ । * रावण का पिता शुद्ध आर्य वंश का तथा माता शुद्ध दैत्य वंश की कन्या थी, जिससे महत्वाकांक्षी वीर रावण का जन्म हुआ। दोनों वंशों का रक्त तथा संस्कार विद्या और बल रावण में मौजूद था । अस्तु रावण ने अपने विमात्रिक बन्धु कुवेर से लंका खाली कराकर स्वयं वहाँ का शासक बन गया । लंका में कुवेर ने यक्ष संस्कृति तथा रावण ने रक्ष संस्कृति की प्रतिष्ठा किया था ।

प्रहलाद का पुत्र विरोचन तथा विरोचन का पुत्र प्रसिद्ध राजा बलि हुआ, जो अजेय था । उससे 'युद्ध करने का साहस किसी में नहीं था, अतः धोके से विष्णु ने उसे बाँध लिया और अन्यत्र भेज दिया और उसकी गद्दी पर उसके पुत्र बाण को बैठा कर देवों का करद बना दिया था।

राजा बलि राजनीतिज्ञ, पुरुषार्थी, न्यायप्रिय, धर्मी, दानी और महातेजस्वी था । उसने अपना पुरोहित शुक्राचार्य को बनाया था, जिसे काव्य- उशना शुक नाम से प्रसिद्धि मिली थी । जहाँ आज केरल राज्य है वहीं पर राजा बलि को रहने के लिये विष्णु ने वाध्य किया था । का राज्य केरल में था जिसे पुराणों में पाताल कहा गया है ।

दानव वंश - कश्यप की दनु नामक पत्नी से जो एक पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम दनुज रखा गया था । इस दनुज के वंशज दानव कहे गये। यह दानव जाति बड़ी लड़ाकू तथा वीर जाति थी । दनुज के वंशधर दानव जाति में शंवर, एक चक्र, महाबाहु, पुलोमा, विप्रचिति, तारक, वृषपर्वा आदि प्रसिद्ध हुये। यह लोग शौर्यवान, वीर्यवान, विजेता तथा महान योद्धा थे । दनु के दो कन्यायें कालिका तथा पुलोमा नाम की पैदा हुई थीं । कालिका के पुत्र कालिकेय से कालिकेय जाति बनी, यह कालिकेय जाति लंका के पूर्वाचल में कुछ अश्मद्वीप पुंज थे, वहाँ के निवासी थे । इन्हीं कालिकेयों के नेता विद्य जिन्ह से रावण की बहन सूपर्णखा का ब्याह हुआ था । उसी अवसर पर रावण और उसके बहनोई विद्य जिन्ह का कुछ कारणों से विरोध हो गया । ब्याह के बाद अभी सूपर्णखा ने एक ही रात अश्मपुरी में अपने पति के साथ मधुयामिनी बिताया था कि रावण ने अश्मपुरी पर आक्रमण करके अपने बहनोई का वध कर डाला । इस पर कालि केयों और राक्षसों में घोर युद्ध हुआ, इस युद्ध में बहुत से कालिकेय मारे गये और बहुत से रक्ष संस्कृति ग्रहण कर लिया ।

सुमाली की चार पुत्रियाँ वैश्रवा को ब्याही गई। इनमें कैकसी से रावण, कुम्भी नसी से कुम्भकरण, राका से विभीषण और पुष्पोत्कटा से सूपर्णखा का जन्म हुआ ।

दनु की दूसरी पुत्री पुलोमी से पुलोमा जाति की उत्पत्ति हुई । इसी पुलोमा वंश की कन्या शची सुन्दरी थी जिसका ब्याह इन्द्र के साथ हुआ। दानव वंश सूर्य वंश का सौतेला भाई कहा जाता है।

विप्रचित्ति दानव का ब्याह प्रहलाद की बहन तिहिका से हुआ था, जिससे शल्य, नमुचि

'नरक, काल नाम, चक्रयोधि तथा राहु-केतु आदि प्रसिद्ध वीर हुये । इसी दानव वंश का एक महान शिलकार “मय" दानव था जिसके वंशधर मयरिका या अब अमेरिका में जा बसे और वहाँ "मय सभ्यता" का प्रचार-प्रसार किया । मयरिका को अमरिका या अमरीका कहते हैं ।

जब देवों और दैत्यों-दानवों का अलगाव हुआ तो "देवों दानवों को सुर" तथा दैत्य- दानवों को असुर संज्ञा प्राप्त हुई। असुरों में भी "खर" जाति की एक और शाखा निकली । इन खरों ने कई विशाल राज्य स्थापित किया और करों के नाम पर अनेकों नगर बसाये । खरों के नाम पर बसे हुये कुछ स्थानों के नाम इस प्रकार हैं-

(१) खसान — जिसे अब खुरासान कहते हैं, यह ईरान के असुरों का प्राचीन

स्थान था ।

(२) खरक द्वीप - पर्शिया की खाद के ऊपर (History of Persia val. I)

(३) इष्ट खर- पासर गद्दी का प्राचीन नाम, (H. P. val. I )

(४) खरन प्रदेश (H. P. val. I )

(५) खर गिर्द - शाहरूख का मदरसा, (H. P. vai I) (६) खरखर असीरिया का प्रदेश (H. P. val. I )

(७) खरतम - मित्र का प्रदेश

पहले देव, दैत्य, मानव, दानव तथा आायों का आपस में विवाह सम्बन्ध होता था, जैसे - दानव वंश का विषपर्वा जो कश्यप से नवीं पीढ़ी में था, उसकी पुत्री शर्मिष्ठा से चन्द्रवशी ययाति का ब्याह हुआ था, जिससे पुरु वंश, अनु वंश तथा द्रह्म वंश चला । दनु के १६ पुत्र होने का • उल्लेख प्राप्त होता है। पुत्रों के नाम द्विमुर्गा, शंवर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अयोमुख, शंकुसर, स्वरभानु, कपिल, अरूण, पुलोमा, कृतपर्वा, एक चक्रा, अनंत, धूम्रकेश, विप्रचित्ति, दुर्जय, वैश्वानर आदि से अलग-अलग वंश च । विप्रचित्ति आनंत का वंश था जिसने सूर्य पुत्र सविता ५ के वंशज सोम को मारा था ।

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