द्विस फेतर व गंधर्व जाति का इतिहास

द्विस फेतर जाति- यह जाति कश्यप को काष्टा नामक पत्नी की संतानों से चली । इनके विषय में कोई विशेष विवरण नहीं प्राप्त होता, किन्तु पुराणों में द्विस फेतर जाति को वनस्पतियों का अधिपति कहा गया है।

गंधर्व जाति - मरीचि पुत्र कश्यप की पत्नी अरिष्टा (५) से गंधर्व नाम का पुत्र पैदा हुआ । इसी गंधर्व के वंशधरों से गंधर्व जाति बनी। भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर जहाँ अब अफरीदी, बलुची और काबुली पठान लोग रहते हैं। वहीं प्राचीन गंधवों का देश गान्धार था । इसी गान्धार वंश की कन्या गान्धारी - दुर्योधन की माता थी । प्राचीन गान्धार को अब कन्दहार या कन्धार कहा जाता है। पुराणों और इतिहासों में गंधर्व जाति का भी उल्लेख पाया जाता है, वे लोग उसी गान्धार प्रदेश के निवासी थे, अतः गंधर्व जाति के नाम पर गांधार राज्य बना, जिसे अब कंधार कहते हैं । पुरातन लेखों के अनुसार गंधर्व जाति महा बलशाली और बड़े डील डौल के होते थे । इस बात की सत्यता का प्रमाण आज भी हमारे सामने सर्वविदित है ।
कि साधारण व्यक्ति की अपेक्षा एक काबुली या काबुली पठान कितने बड़े डील-डोल के होते हैं, और साधारण व्यक्ति की अपेक्षा उनमें शारीरिक शक्ति भी अधिक होती है, यह सभी विशेषतायें उस स्थान के जलवायु के कारण हैं । यह काबुल और कंधार एक दूसरे के पड़ोसी राज्य थे । यह जलवायु की विशेषता प्राचीन काल से अब तक एक समान है। प्राचीन काल में गंधर्व लोग बड़े योद्धा थे । यौद्धिक गुणों के अतिरिक्त गंधर्व लोग बड़े विलासप्रिय, संगीतज्ञ, नृत्यकला में प्रवीण तथा अश्वारोही भी थे । इन्द्र के दरबार से लेकर पृथ्वी पर अनेक राज्यों में गंधवों का आवा- गमन रहता था । कालान्तर में गंधर्व लोग पठानवंशी क्षत्रिय वन गये और महाभारत काल तक इनका प्रभाव, शादी-रोह आदि का सिलसिला आर्यों से बना रहा। ईसा की पाँचवी शताब्दी बाद में यह लोग इस्लाम धर्म ग्रहण करके मुसलमान बन गये । जब यह लोग क्षत्रिय थे तभी चन्द्रवंशियों की प्राचीन राजधानी प्रतिष्ठानपुर (भूंसी) से चन्द्रवंश की शाखा जाकर पाठन क्षत्रियों में सम्मिलित हो गई। इस नई शाखा को पठान क्षत्रिय "अपगण" (अर्थात बाद में आये हुये ) कहने लगे । यह अपगण शाखा फन्टियर में प्रवास करके प्रजा सत्तात्मक शासन स्थापित किया। इन अपगणों का निवास क्षेत्र भी अपगण कहा गया, यही अपगण राज्य बाद अफगण कहाते कहाते अफगान कहा जाने लगा जिसे अब अफगानिस्तान कहा जाता है। पुराणों में उल्लिखित गंधों के २८ नाम यहाँ दिये जा रहे हैं जिनसे गंधवों की २८ शाखायें चलीं ।

(१) तुम्बरू, (२) भीमसेन, (३) उग्रसेन, (४) अर्णायु, (५) अनध, (६) गोपति, (७) धृतराष्ट्र, (८) सूर्यवर्चा, (६) युगप, (१०) तृणप, (११) काणि, (१२) नन्दि, (१३) चित्ररथ, (१४) शालिशिरा, (१५) पर्जन्य, (१६) कलि, (१७) नादे, (१८) ऋत्वा, (११) वृहत्वा, ( २० ) वृहक, (२१) कराल, (२२) सुवर्ण, (२३) विश्वावसु, (२४) भूमन्यु, (२५) सुचन्द्र, (२६) शरू, (२७) संगीतज्ञ, इसमें दो उपशाखायें हो गई, (१) हाहा, (२) हूहू, (महाभारत)

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