"अभयदान" महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी की वीरता
"अभयदान" महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी की वीरता
एक समय की बात है रणभूमि में घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी और उनके अनुज भ्राता महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी दुश्मनों को गाजर मूली के भांति काट रहे थे युद्ध लड़ते लड़ते महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी जी काफी दूर निकल गए थे महाराजा मल्हीय सिंह युद्ध लड़ रहे थे अचानक दुश्मनों की सेना ने महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी को चारों तरफ से घेर लिया युद्ध बड़ा ही विकराल रूप ले चुका था महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी ने दोनों हाथों में तलवार लेकर दुश्मनों को एक तरफ से काटते हुए आगे बढ़ रहे थे अचानक घोड़े पर सवार दुश्मन महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी के पीछे से पीठ पर वार कर देता है जिससे उनका शरीर खून से लथपथ हो गया और एक बाजू में गहरा जख्म हो गया लेकिन फिर भी उनके मुंह से आह तक न निकली महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी के एक ही प्रहार से दुश्मन घोड़े समेत नीचे गिर पड़ा और वो निहत्था हो गया महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी अपने अश्व से नीचे उतरे और दुश्मन को एक तलवार हाथ में देते हुए कहा लो अब मुझपर प्रहार करो मैं निहत्थे और स्त्रियों पर कभी वार नहीं करता इतना सुनकर दुश्मन महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज हमने आपको इतने जख्म दिए पीछे से वार किया आप चाहते तो मैं निहत्था था मुझे समाप्त कर सकते थे किन्तु आपने मुझे अभयदान दिया मैं जबतक जीवित रहूंगा आपका दास बनकर आपकी सेवा करूंगा। तबतक महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी जी वहां पहुंच चुके थे और अपने अनुज भ्राता को उसे क्षमादान देते हुए देखा तो बहुत ही प्रसन्न हुए उन्हें अपने गले से लगा लिया।
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