मनुर्भरत वंश की उत्तनपाद शाखा पर्शिया, यूरोप का इतिहास History of Uttanapad branch of Manurbharat dynasty, Persia, Europe
मनुर्भरत वंश की उत्तनपाद शाखा पर्शिया, यूरोप का इतिहास History of Uttanapad branch of Manurbharat dynasty, Persia, Europe
इस वंश की ६७ पीढ़ियों का भोग काल लगभग १८७६ वर्षों का माना गया है जिसे सतयुग (Heroic Age) कहते हैं.। सतयुग में बड़ी-बड़ी राजनैतिक तथा सांस्कृतिक घटनायें हुई जो आगे लिखी गई हैं। इस वंश में अत्यराति जानन्त पति महान चक्रवर्ती सम्राट हुआ । (ऐत-रेय ब्राह्मण - ८/४/१) । इनकी राज्य सीमा पश्चिम में आर्द्रपुर व आर्द्र सागर एवं युवन सागर तक फैली थी ।
उत्तानपाद के दो पुत्र थे, जिनका नाम ध्रुव तथा उत्तम था। उत्तम के वंशज उत्तम जाई पठान कहलाये जो हिन्दू पठान अफगानिस्तान में हैं। ध्रुव के पुत्र श्लिष्ट थे जिनका एक नाम भव्य भी था । श्लिष्ट के पाँच पुत्र थे, जिनके नाम क्रमशः ऋभु, रिपुंजय, वीर, वृकल तथा वृक थे । प्रजापति ऋभु स्वायंभुव मनु से पाँचवीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये। ऋभु के बाद लग-भग तीस पीढ़ी तक ऐसा लगता है कि इस वंश में कोई प्रभावशाली व्यक्ति नहीं पैदा हुआ क्योंकि उनके नामों का स्पष्ट रूप से पता नहीं चलता। इन नामों में कहीं कुछ और कहीं कुछ नाम प्राप्त होते हैं जिनको प्रमाणित करने में कहीं-कहीं कल्पना का सहारा लेना पड़ सकता है इसलिये यह बीच के नाम छोड़ दिये हैं। ऋभु को ३० पीढ़ी बाद अर्थात स्वायंभुव मनु से ३६वीं पीढ़ी में चाक्षुष मनु हुए, जिनके नाम से चाक्षुष मन्वन्तरि काल की गणना होती है। (देखें ऋग्वेद १०/६०, जैमिनीय ब्राह्मण १/१४६, विष्णु पु०, हरिवंश, महाभारत ५८/६६-१३६) । चाक्षुष मनु के ६ पुत्र बड़े प्रतापी हुये, इनकी यश पताका उस समय से लेकर अब तक विश्व में फहरा रही है। चाक्षुष मनु के छः पुत्रों के नाम क्रमशः अत्यराति-जानन्त पति, अभिमन्यु, उर, पुर, तपोरत और सुद्युम्न थे, जिनका अलग-अलग वितरण इस प्रकार है
अत्यराति, चाक्षुष मनु का ज्येष्ठ पुत्र था। यह चक्रवर्ती सम्राट था (ऐतरेय ब्राह्मण ८/४/१) । इसकी राज्य सीमा पश्चिम में आर्द्रपुर व आर्द्र सागर एवं युवन सागर (यूनान) तक फैली हुई थी (देखें पशिया का इतिहास प्रथम खण्ड) पशिया का पूर्वी भाग जिसे अब सत्यगिदी कहा जाता है, उस समय सत्य लोक के नाम से विख्यात था। उसी के पास सुमेरू के निकट वैकुण्ठ धाम था, यह वही वैकुण्ठ है जिसका वर्णन पुरातन ग्रंथों में रूपक के साथ भरा पड़ा है। यही वैकुष्ठ नामक नगर सम्राट अत्यराति की राजधानी थी। देमावन्द एलबुर्ज पर प्राचीन बैकुण्ठ धाम आजकल इरानियन पैराडाइज के नाम से प्रसिद्ध है। (पैराडाइज का अर्थ वैकुण्ठ या स्वर्ग है, इसका पूर्ण विवरण जानने के लिये देखें पशिया का इतिहास भाग प्रथम पृ० ११७, १२३ और १७३) । अत्यराति का नाम सम्भवतः अराति भी था। इन्हीं अत्यराति या अराति के वंशजों से अरात्र जाति बनी, जो उस प्रदेश में अब भी बड़ी संख्या में पाई जाती है। यह अराट जाति अब इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया है। जिस प्रदेश में अराट जाति रहती है उस देश को आरमेनिया देश कहा जाता है। ईरान का अराट पर्वत भी अराति या अत्यराति के नाम पर है। अत्यराति के ५ भाई और उनका भतीजा अंगिरा, यह छहो विश्व के महान विजे-ताओं में गिने जाते हैं। सम्राट अत्यराति महान विजेता और प्रतापी था। यह एक बड़े भू-भाग का अधिपति था । इन महान विशेषताओं के कारण इसे जानन्तपति की उपाधि मिली थी । अत्यराति इस वंश की सैंतोसवीं पीढ़ी का पुरुष था ।
अभिमन्यु चाक्षुप मनु का द्वितीय पुत्र था, यह अत्यराति से छोटा और उर से ज्येष्ठ था । यह अभिमन्यु भी अत्यराति जानन्तपति की तरह महान योद्धा तथा विजेता था । इसने अर्जनम नामक स्थान में एक विशाल दुर्ग निर्माण कराया था, जो अभिमन्यु दुर्ग के नाम से बहुत विख्यात हुआ । अभिमन्यु की राजधानी सुपा नगर में थी ।
सुपा विश्व की प्राचीनतम नगरी थी, जो सुमेर प्रान्त में अंर्बुद (पशिया की खाड़ी) पर अब तक है। आचिलोजी विभाग द्वारा सुपा की खुदाई कुछ दिन पहले हुई थी, जिसमें उन्हें लगभग आठ हजार वर्ष पहले की वस्तुयें प्राप्त हुई हैं। यह स्थान चक्रवर्ती सम्राट महाराज अत्यराति के भाई मन्यु-अभिमन्यु ग्रीक ने अर्जनम में अभिमन्यु दुर्ग का निर्माण कराया था। जहाँ से वह ट्राय (Troy) के युद्ध में सेना सहित आकर सम्मिलित हुआ था। यही अभिमन्यु दुर्ग वाद में मन्यु पुरी कहलायों, और बाद में मन्यु पुरी का नाम सुपा हो गया। सुपा नगर के बारे में पशिया के इतिहास प्रथम भाग में लिखा है कि-
Susa or shush or the City of Memnon, the Encient capital of Elam and the Oldest Known site in the world, (History of Peria vol I. Page 59) 1
यह अभिमन्यु महान योद्धा तथा विजेता था। ट्राय के युद्ध में इसकी वीरता का वर्णन "ओडेसी" (Odyssey) ने बड़े महत्वपूर्ण शब्दों में किया है, जिसका एक छोटा सा उदाहरण . यहाँ पर देते हैं-
To Troy No Hero came of Nobler Line.
or if of Nobler Memnon it was Thine-Odyssey (History of Persia vol. I page 55)
इन उपरोक्त उद्धरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि अत्यराति जानन्तपति के समान ही अभिमन्यु भी महान योद्धा और विजेता था। अभिमन्यु के दो पुत्र थे जिनका पता कई प्रमाणित लेखों से मिलता है। इन पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र मन्यु था और कनिष्ठ पुत्र केशी था । मन्यु और केशी भी अपने पिता की तरह विजेता और योद्धा थे। मन्यु के वंशज, मन्यु जाति
के नाम से विख्यात हुये और यह लोग अब भी उसी नाम से समस्त ग्रीक देश में फैले हुये हैं।
मन्यु के छोटे भाई केशी के दंशधर केणीवर जाति के नाम से विख्यात हुये, जिनका मुख्य निवास पशिया देश है। बहुत समय बीत जाने के उपरान्त भी यह मन्यु जाति और केशीवर जाति अपने मूल गोत्र से अब भी प्रसिद्ध है। यह बात और है कि इन जातियों की अनेकों शाखायें हो गई जिनका विवरण पर्णिया के इतिहास में देखा जा सकता है।
उर जो चाक्षुष मनु का तीसरा पुत्र था, यह भी अपने दोनों भाइयों अत्यराति जानन्त-पति तथा अभिमन्यु की तरह महान विजेता तथा योद्धा था। उर का साम्राज्य अपने अन्य भाइयों की अपेक्षा अधिक विस्तृत था। यह उर देश का शासक था (उर देश को उर लोक, उरजन, करतार (अब अरमुज्द) सुपा उर (चाल्डिया) जो फारस और अरव का मध्यवर्ती प्रदेश है कहा जाता था । उरलोक या करतार के निवासियों ने अन्य विषयों के साथ-साथ सामाजिक और राजनैतिक स्थिति में अच्छी उन्नति कर लिया था। उर के वंशजों को पहले उर जाति या उरपियन कहा जाता था। सम्भव है इन्हीं के वंशज जो उरपियन कहलाते थे वहाँ से निकल कर अन्य स्थानों पर जा बसे और कालान्तर में उरपियन से योरोपियन कहलाने लगे। ऐसा भी सम्भव है कि उन्हीं उरपियन या योरोपियन के रहने के नये स्वान का नाम वर्तमान युरोप पड़ गया हो। करतार के रहने वाले करतार वंश के कहे गये, जिसमें ब्रह्मा भी सम्मि लित हैं।
उर के राज्य उर लोक की स्त्रियों को उर्वशी कहा जाता था। चन्द्रवंशी बुध के पुत्र पुरूरवा का व्याह उर्वशी से हुआ था जो कुछ दिन बाद पुरूरवा को छोड़कर उर देश चली गई थी (देखें भागवत पु० चन्द्रवंश का वृतान्त) । इन्द्र की सभा में अनेकों उर्वशी नर्तकियां थीं जिनका वर्णन पुरातन लेखों में भरा पड़ा है। कौरवों-पान्डवों के मामा शल्य उर देश का था। जब कर्ण महाभारत युद्ध में सेनापति बना तो उसने शल्य को अपना सारथी बनाना चाहा । पहले तो शल्य ने अपना अपमान समझा और सारथी बनने के लिये तैयार नहीं हुआ किन्तु जब कर्ण ने शल्य को फटकारते समय यह कहा कि तुम कहाँ के इतने सम्मानित व्यक्ति हो ? क्योंकि तुम्हारे यहाँ स्त्रियों में अन्य पुरुषों का विचार नहीं है। वह नर्तकियाँ हैं और जहाँ-तहाँ नाचती फिरती हैं। नंगी होकर सबके सामने नहाती हैं, रीति रिवाज तथा पर्दे का कोई भेद नहीं मानतीं । जिससे मन चाहा विवाह कर लेती हैं और कुछ समय बाद उस पुरुष को छोड़कर अन्य के पास चली जाती हैं, तो ऐसे देश के निवासी तुम कहाँ के सम्माननीय वन गये जो सारथी बनने में अपना अपमान समझ रहे हो। इन बातों से लज्जित होकर शल्य ने कर्ण का सारथी बनना स्वीकार कर लिया (देखें महाभारत कर्ण प्रसंग) ।
कर्ण द्वारा वर्णित उर देश की प्रथायें आज युरोप की सभ्यता बनी हुई हैं। अतः यह मानना पड़ता है कि उर के वंशजों की सभ्यता तथा संस्कृति का प्रभाव आज भी यूरोप और युरोपियनों में पाई जाती है। उर के वंशज उर लोक तथा उरजन नामक स्थानों के निवासी थे जिसे अब उरमुज्द (Ormuzed) कहा जाता है। यह प्राचीन सुपा उर था जिसे चाल्डिया कहा जाता है। यह स्थान फारस और अरब का मध्यवर्ती प्रदेश है।
उर के चार पुत्र थे, जिनके नाम क्रमशः इलावृट, वेविल, अंगिरा तथा अंग थे। जिनका अलग-अलग वर्णन संक्षेप में है।
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